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सादासादाणुयोगद्दारे अप्पाबहुअं
( ५०३ एत्तो अट्टहि पदेहि अप्पाबहुअं कायव्वं । तं जहा-- सादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं जं सादत्ताए वेदिज्जदि तं थोवं । जं सादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं असादत्ताए वेदिज्जदि तं विसेसाहियं । विसेसो पुण संखे० भागो। जमसादताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं । जमसादत्ताए बद्धं असंछुद्धं अपडिसंछुद्धं असादत्ताए वेदिज्जदि तं विसेसाहियं । जं सादत्ताए बद्ध संछुद्धं पडिसंछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तमसंखेज्जगुणं । जं सादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिसंछुद्धं असादादत्ताए वेदिज्जदि तं विसेसाहियं । जमसादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिसंछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं । जमसादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिसंछुद्धं असादात्ताए वेदिज्जदि तं विसेसाहियं । ___ अविपच्चिदासु सव्वासु गदीसु एइंदिएसु च ओघभंगो । अध विपच्चिदे . कधं भवदि? णिरयगदीए समुट्टिदं जं णिरयगदीए चेव विपच्चदि एवं विपच्चिदं णाम। एदेण अट्ठपदेण विचिदस्स अप्पाबहुअं वुच्चदे । तं जहा--णिरयगईए ताव जं
यहां आठ पदोंके द्वारा अल्पबहुत्व करते हैं । वह इस प्रकार है- ( १ ) सातस्वरूपसे
असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होकर सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह स्तोक है। (२ जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह विशेष अधिक है । विशेषका प्रमाण उसका संख्यातवां भाग है । ३) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है । ( ४ ) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह विशेष अधिक है। (५) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह असंख्यातगुणा है। (६) जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह विशेष अधिक है। (७) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होकर सातस्वरूपसे वेदा जाता है वह संख्यातगुणा है । (८) जो असातस्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त व प्रतिसंक्षिप्त होता हुआ असातस्वरूपसे वेदा जाता है वह विशेष अधिक है।
अविपच्चित अर्थात् विपाक रहित सब गतियों और एकेन्द्रियोंमें प्रकृत अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा ओघके समान है।
शंका-- विपच्चितमें अल्पबहुत्व किस प्रकार है ? समाधान-- नरकगतिमें उत्पन्न हुआ जो नरकगतिमें ही विपाकको प्राप्त होता है उसका नाम विपच्चित है। इस अर्थपदके अनुसार विपच्चितका अल्पबहुत्व कहते हैं । वह इस प्रकार है
(१) नरकगतिमें जो सातस्वरूपसे बांधा जाकर असंक्षिप्त व अप्रतिसंक्षिप्त होता हुआ
अ-काप्रत्यो: 'अधियं चिदासु', ताप्रती 'अधियंचिदासु ( अविच्चिदासु' इति पाठः । अ-काप्रत्यो: 'विचिदे', ताप्रती 'वियं (पच्चि ) चिदे' इति पाठः।
काप्रतौ' विपंचदि' इति पाठः । 0 प्रतिषु 'विपंचिदं' इति पाठः । Jain Education International
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