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________________ सादासादाणुयोगद्दारे सामित्तं ( ४९९ सामित्तं । तं जहा- उक्कस्समयमेयंतसादं कस्स होदि ? अभवसिद्धियपाओग्गे पयदांजो सत्तमाए पुढवीए रइयो गुणिदकम्मसियो ततो उध्वट्टिदो संतो सववल हुं एक्कत्तीसंसागरोवमट्टिदियं देवलोगं गच्छिहिदि । किं कारणं ? तस्स सादवेदयद्धाओ सव्वमहंतीयो बहुआओ च भविस्संति । तदो जो एवं देवलोगे भविस्सो सत्तमाए पुढवीए णेरइयो तस्स चरिमसमयणेरइयस्स उक्कस्सयमेयंतसादं । अणेयंतसादमुक्कस्सय कस्स? जो सत्तमाए पुढवीए रइयो डादरपुढविकाइएसु तसकाइएसु च कम्म गुणेदूण आगदो, तस्स पुण जो अधापवत्तसंकमेण असंकमस्स अवहारकालो तत्तियमेत्त जीविदव्वस्स सेसं, सो च तं जीविदव्वसेसं सव्वमसादो भविस्सदि, तस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागसेसाउअस्स रइयस्स उक्कस्सयमणेयंतसादं । उक्कस्सयमेयंतअसादं कस्स ? जारिसस्सी रइयस्स उक्कस्सयमणेयंतं सादं कदं तारिसस्सेव णेरइयस्स उक्कस्सयमेयंतअसादं । णवरि णाणत्तं बादरकाइएसु अच्छिदो वा ण वा। उक्कस्सयमणेयंतअसादं कस्स ? जस्स उक्कस्सयमेयंतअसादं तस्सेव उक्कस्सयमणेयंतअसादं । णवरि बादरकाइएसु तसकाइएसु च कम्भं गुणेदूण णिरयगई पवेसेदवो । तस्स देवलोगभाविस्स चरिमसमयणेरइयस्स उक्कस्सयमणेयंतं असादं । स्वामित्वका कथन किया जाता है । यथा- उत्कृष्ट एकान्तसात किसके होता है ? यहां अभव्यसिद्धिकप्रायोग्य प्रकृत है । जो सातवीं पृथिवीका नारकी गुणितकर्माशिक वहांसे निकल कर सर्वलघु कालमें इकतीस सागरोपम आयुस्थितिवाले देवलोकको प्राप्त होगा उसके होता है । शंका- इसका कारण क्या है ? समाधान- इसका कारण यह है कि उसके सातावेदककाल सबसे महान् और बहुत होंगे। इसलिये जो आगे देवलोकमें जन्म लेगा ऐसा जो सातवीं पृथिवीका नारकी है उस अन्तिम समयवर्ती नारकीके उत्कृष्ट एकान्तसात होता है। उत्कृष्ट अनेकान्तसात किसके होता है ? जो सातवीं पृथिवीका नारकी बादर पृथिवीकायिकों और त्रसकायिकोंमें कमंको गुणित करके ( गुणितकर्माशिक होकर ) आया है, उसका जो अधःप्रवृत्तसंक्रमसे असंक्रमका अवहार काल है उतना मात्र जीवन शेष है, वह उस शेष सब जीवन पर्यंत सातासे रहित होगा, उस पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र शेष आयुवाले नारकीके उत्कृष्ट अनेकान्तसात होता है । उत्कृष्ट एकान्तअसात किसके होता है ? जिस प्रकारके नारकी के उत्कृष्ट अनेकान्तसात किया गया है उसी प्रकारके ही नारकीके उत्कृष्ट एकान्तअसात होता है । विशेष इतना है वह बादरकायिकोंमें रह भी सकता और नहीं भी । उत्कृष्ट अनेकान्तअसात किसके होता है? जिसके उत्कृष्ट एकान्तअसात होता है उसीके उत्कृष्ट अनेकान्तअसात होता है । विशेष इतना है कि बादरकायिकोंमें और त्रसकायिकोंमें कर्मको गुणित करके उसे नरकगति में प्रविष्ट कराना चाहिये । देवलोकमें उत्पन्न होनेवाले उसी अन्तिम समयवर्ती नारकीके उत्कृष्ट अनेकान्तअसात होता है । 83 प्रतिषु 'उट्टिदो ' इति पाठः। * अ-काग्त्योः ' मेयंतसाद' इति पाठः। 8 अप्रतो 'जाविसस्स', ताप्रतो 'जावि (रि) सस्स' इति पाठः। 8 अ-काप्रत्योः 'णागत्तबादरं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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