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________________ ४६० } छक्खंडागमे संतकम्मं पुरिसवेदस्स अवत्तत्व० थोवा । अवट्टिय० असंखे० गुणा । भुजगार० अनंतगुणा । अप्पदर० संखे० गुणा । मिच्छत्तस्स अत्रद्विदसंकामया थोवा । अवत्तव्व असंखे० गुणा । भुजगार० असंखे० गुणा । अप्पदर असंखे० गुणा । सम्मत्तस्त अवत्तव्व. थोवा । भुजगार० असंखे० गुणा । अप्पदर असंवे० गुणा । सम्मामिच्छत्तस्स सम्मत्तभंगो* । 3 णिरयगइ० अवत्तव्वया थोवा । भुजगार० असंखे० गुणा । अप्पदर० असंखे० गुणा । तिरिक्खगणामाए अवत्त० थोवा । अप्पदर अनंतगुगा । भुजगार० संखे गुणा | मणुसगइणामाए अवट्ठिद० थोवा । अवत्तव्व असंखे० गुणा । भुजगार० अणंतगुणा । अप्पदर० संखे० गुणा । देवगइणामाए अवद्विद० थोवा । अवत्तव्व० असंखे ० गुणा । भुजगार असंखे० गुणा । अप्पदर० असंखे० गुणा । ओरालिय- तेजा - कम्मइयसरीराणं मदिआवरणभंगो। सव्वासि धुवबंधिणामपयडीर्ण णाणावरणभंगो। पढमसंठाण- पढमसंघडणाणं मणुसगइभंगो। चदुसंठाण-चदुसंघडणाणं अवत्तव्व. थोवा । भुजगार अनंतगुणा । अव्यदर० संखे० गुणा । हुंडठाण असंपत्त 3 अवस्थित संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । भुजाकार संक्रामक अनन्तगुगे हैं । अल्पतर संक्रामक संख्यातगुणे हैं । मिथ्यात्व के अवस्थित संक्रामक स्तोक हैं। अवक्तव्य संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । भुजाकार संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। अल्पतर संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । सम्यक्त्व प्रकृति के अवक्तव्य संक्रामक स्तोक हैं । भुजाकार संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अनतर संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। सम्यग्मिथ्यात्वकी प्ररूपणा सम्यक्त्व प्रकृतिके समान है । नरकगति नामकर्मके अवक्तव्य संक्रामक स्तोक हैं । भुजाकार संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अल्पतर संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । तिर्यंचगति नामकर्मके अवक्तव्य संक्रामक स्तोक हैं । अल्पतर संक्रामक अनन्तगुणे हैं । भुजाकार संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यगति नामकर्मके अवस्थित संक्रामक स्तोक हैं । अवक्तव्य संक्रामक असंख्यातगुगे हैं । भुजाकार संक्रामक अनन्तगुणे हैं । अल्पतर संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । देवगति नामकर्मके अवस्थित संक्रामक स्तोक हैं । अवक्तव्य संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । भुजाकार संक्रानक असंख्यात हैं । अलवर संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । औदारिक, तेजस और कार्मण शरीरोंके प्रकृत अल्पबहुत्व की प्ररूपणा मतिज्ञानावरण के समान है । सब ध्रुवबन्धी नामप्रकृतियोंकी यह प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान | प्रथम संस्थान और प्रथम संहननकी प्ररूपणा मनुष्यगतिके समान है । चार संस्थानों और चार संहननों के अवक्तव्य संक्रामक स्तोक हैं । भुजाकार संक्रामक अनन्तगुणे हैं । अल्पतर संक्राकम संख्यातगुणे भुजगारसं कामया अवदसं कामया असंखेज्जगुगा । क. पा. सु पृ. ४४३, ५११-१४. D पुरिसवेदस्स सव्वृत्योवा अवत्तव्वसंकामया । अनंतगुणा । अप्पयरसंकामया संखेज्जगुणा । * सव्वत्थावा मिच्छत्तस्स अवट्ठिदसंकामया । अवत्तण्व संकामया असं बेज्जगुगा । भजगारसकामया असंखेज्जगणा । अप्पयरसंकामया असंखेज्जगुणा । क. पा. सु. पू. ४४२, ४५७-५००. सम्मत्त सम्मामिच्छतागं सव्वत्थोवा अवत्तव्वसंकामया । भुजगारसंकामया असंखेज्जगुणा । अप्पयरसंकामया असंखेज्जगुणा । क. पा. सु. पू. ४४३, ५०१-५०३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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