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________________ संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो ( ४५७ मणुसगइणामाए भुजगार० जह० एगसमओ। उक्क० पलिदो० असंखे० भागो, हेदुणा तेत्तीससागरोवमाणि समयूणाणि । अप्पदर० जह० एगसमओ। उक्क० पलिदो० असंखे० भागो, हेदुणा तिणि पलिदो० सादिरेयाणि । अवट्ठिद० जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया। देवगइणामाए भुजगार० जह० एगसमओ । उक्क० पलिदो० असंखे० भागो, हेदुणा तिण्णि पलिदो० सादिरेयाणि । अप्पदर० जह० एगसमओ । उक्क० पलिदो० असंखे० भागो, हेदुणा तेत्तीसं सागरोवमाणि सादि० । अवट्ठिय० जहण्णण एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया। ओरालियसरीर० भुजगार० जह० एगसमओ । उक्क० पलिदो० असंखे० भागो, हेदुणा तेत्तीसं सागरोवमाणि समयणाणि । अप्पदर० जह० एगस० । उक्क० पलिदो० असं० भागो, हेदुणा तिण्णि पलिदो० सादिरेयाणि। अवडिय० जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया । वेउब्वियसरीरस्स देवगइभंगो।। धुवबंधीणं सवणामपयडीणं मदिणाणावरणभंगो। समचउरससंठाणस्स भुजगारअप्पदरकालो जह० एगसमओ । उक्क० उवदेसेण पलिदो० असंखे० भागो, हेदुणा भुजगारकालो अप्पदरकालो च तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । अवढिद० जह० एगसमओ, उक्क संखेज्जा समया । वज्जरिसहणारायणसंघडणस्स मणुसगइभंगो । जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र है, युक्तिसे वह एक समय कम तेतीस सागरोपम मात्र है। उसके अल्पतर संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय मात्र है। उत्कर्षसे वह पल्योपमके असंख्यातवें भाग तथा हेतुसे साधिक तीन पल्य प्रमाण है । अवस्थित संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय मात्र है । देवगति नामकर्मके भुजाकार संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय मात्र है। उत्कर्षसे वह पल्योपमके असंख्यात भाग तथा हेतुसे साधिक तीन पल्योपम प्रमाण है । अल्पतर संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय मात्र है । उत्कर्षसे वह पल्योपमके असंख्यातवें भाग तथा हेतुसे साधिक तेतीस सागरोपम मात्र है । अवस्थित संक्रामकका काल जवन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय मात्र है। औदारिकशरीरके भुजाकार संकामका काल जघन्यसे एक समय मात्र है। उत्कर्षसे वह पल्योपमके असंख्यातवें भाग तथा हेतुसे एक समय कम तेतीस सागरोपम मात्र है । अल्पतर संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय मात्र है । उत्कर्षसे वह पल्पोपमके भाग असंख्यातवें तथा हेतुसे साधिक तीन पल्योपम मात्र है । अवस्थित संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय मात्र है । वैक्रियिकशरीरकी प्ररूपणा देवगतिके समानन है । सब ध्रुवबन्धी नामप्रकृतियोंकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरण के समान है । समचतुरस्रसंस्थानके भुजाकार और अल्पतर संक्रामक का काल जघन्यसे एक समय मात्र है। उत्कर्षतः वह उपदेशसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग तथा हेतुसे भुजाकार संक्रामक व अल्पतर संक्रामक दोनों ही काल साधिक तेतीस सागरोपम मात्र हैं । अवस्थित संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय है । वज्रर्षभवज्रनाराच संहननको प्ररूपणा मनुष्यगतिके समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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