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________________ संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो ( ४४९ भत्थरासिगुणिदविज्झादभागहारस्स असंखे० गुणहोणत्तादो। णवंसयवेद० असंखे० गुणो । णीचागोद० संखेज्जगुणो० । इथिवेद० असंखे० गुणो । ओरालिय० असंखे० गुणो। कोधसंजलण. असंखे० गुणो । माणसंजलण० विसे० । पुरिस० विसे० । मायासं० विसे । जसकित्ति० असंखे० गुणो । तेजइय० संखे० गुणो, धुवबंधित्तादो। कम्मइय० विसे० । अजसकित्ति० संखे० गुणो । हस्मे संखे० गुणो । रदी० विसेसा० । सादे संखे० गूणो। सोगे संखे० गुणो। कुदो अधापवत्तभागहारादो विज्झादभागहारस्स संखेज्जगुणहोणत्तं णव्वदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो । अरदी०विसे० । दुगुंछा० विसे । भय० विसे० । लोहसंजल० विसे० । दाणंतराइय० विसे० । लाहंतरा० विसे० । भोगंतरा० विसे । परिभोगंतरा० विसे । विरियंतरा विसे० । मणपज्जव० विसे० । ओहिणा. विसे । सुदणाणावरणे० विसे० । आभिणिबोहियणाणाव० विसे० । ओहिदसणाव० विसे। अचक्खु. विसे० । चक्खु० विसे० । असादे संखेज्जगुणो। एवमोघेण जहण्णओ पदेससंकमदंडओ समत्तो। णिरयगईए सव्वत्थोवो सम्मत्ते जहण्णओ पदेससंकमो । सम्मामिच्छत्ते असंखे० सागरोपमोंकी अन्योन्याभ्यस्त राशिसे गुणित विध्यातभागहार असंख्यातगुणा हीन है। तिर्यचगति से नपुंसकवेदमें असंख्यातगुणा है। नीचगोत्रमें संख्यातगुणा है। स्त्रीवेदमें असंख्यातगुणा है। औदारिकशरीरमें असंख्यातगुणा है। संज्वलन क्रोधमें असंख्यातगुणा है। संज्वलन मानमें विशेष अधिक है । पुरुषवेदमें विशेष अधिक है। संज्वलन माया में विशेष अधिक है। यशकीतिमें असंख्यात गुणा है । तैजसशरीरमें संख्यातगुणा है, क्योंकि, वह ध्रुवबन्धी है। कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। अयशकीतिमें संख्यातगृणा है। हास्यमें संख्यातगुणा है। रतिमें विशेष अधिक है। सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है । शोकमें संख्यातगुणा है। शंका- अधःप्रवृत्तभागहारकी अपेक्षा विध्यातभागहार संख्यातगुणा हीन है, यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान - वह इसी सूत्रसे जाना जाता है। उससे अरतिमें विशेष अधिक है । जुगुप्सामें विशेष अधिक है। भयमें विशेष अधिक है। संज्वलन लोभमें विशेष अधिक है । दानान्तरायमें विशेष अधिक है। लाभान्तरायमें विशेष अधिक है। भोगान्तरायमें विशेष अधिक है । परिभोगान्तरायमें विशेष अधिक है। वीर्यान्तरायमें विशेष अधिक है। मनःपर्ययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरण में विशेष अधिक है । अभिनिबोधिकज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है । असातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। इस प्रकार ओघसे जघन्य प्रदेशसंक्रमदण्डक समाप्त हुआ। नरकगतिमें जघन्य प्रदेशसंक्रम सम्यक्त्व प्रकृतिमें सवसे स्तोक है। सम्यग्मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है । मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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