SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो ( ४४५ विसे० । सुदणाणा० विसेसा० । मदिणाणावरणे विसे० । ओहिदसणावरणे विसे० । अवखुदंसणावरणे विसे० । चक्खुदंस० विसे । असादे संखे० गुणो । उच्चागोदे विसे० । णीचागोदे विसे । एवं णिरयगईए उक्कस्सओ पदेससंकमदंडओ समत्तो। तिरिक्खगईए उक्कस्सओ पदेससंकमो सम्मत्ते थोवो । सम्मामिच्छत्ते असंखे० गुणो। अपच्चक्खाणमाणे असंखे० गुणो । कोधे० विसे० । माया विसे० लोभे विसे। पच्चक्खाणमाणे विसे० । कोधे विसे०। माया विसे०। लोभे विसे। केवलणाणावरणे विसे०। पयलाए विसे०। णिहाए० विसे०। पयलापयला० विसे० । णिहाणिद्दाए विसे०। थोणगिद्धीए विसे० । केवलदसणावरणे विसे० । मिच्छत्ते असंखे० गुणो । अणंताणुबंधिमाणे असंखे० गुणो । कोहे विसे० । मायाए विसे० । लोभे विसे० । णिरयगइणामाए अणंतगुणो। आहारसरीर० असंखे० गुणो । जसकित्ति० असंखे० गुणो । वेउव्विय० संखे० गुणो । ओरालिय विसे० । तेजा. विसे० । कम्मइय० विसे०। अजसकित्ति० संखे० गुणो । देवगदीए विसे०। तिरिक्खगईए विसे०। मणुसगई० विसे० । हस्से० संखे० गुणो । रदीए विसे० । सादे संखे० गुणो । इथिवेदे अवधिज्ञानावरण में विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरण में विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है । अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है । असातावेदनीयमें संख्यातगुणा है । उच्चगोत्रमें विशेष अधिक है। नीचगोत्र में विशेष अधिक है । इस प्रकार नरकगति में उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमदण्डक समाप्त हुआ। तिर्यंचगतिमें उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम सम्यक्त्व प्रकृति में सबसे स्तोक है। सम्यग्मिथ्यात्वमें असंख्यात गुणा है। अप्रत्याख्यानावरण मानमे असंख्यातगुणा है। क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभ में विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है। क्रोध में विशेष अधिक है। माया में विशेष अधिक है । लोभ में विशेष अधिक हैं। केवलज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। प्रचलामें विशेष अधिक है । निद्रामें विशेष अधिक है। प्रचलाप्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रानिद्रा में विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरणमे विशेष अधिक है । मिथ्यात्व में असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है । क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामे विशेष अधिक हैं। लोभमे विशेष अधिक है । नरकगति नामकर्ममे अनन्तगुणा है। आहारकशरीर नामकर्ममें असंख्यातगुणा है। यशकीर्तिमें असंख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीरमें संख्यातगुणा है। औदारिकशरीरमें विशेष अधिक है । तैजसशरीरमें विशेष अधिक है । काम गशरीर में विशेष अधिक हैं । अयशकीति में संख्यातगणा हैं। देवगतिमें विशेष अधिक हैं। तिर्यंचगतिमें विशेष अधिक है। मनुष्य गति में विशेष अधिक है । हास्यमें संख्यातगुणा है। रतिमें विशेष अधिक है। सातावेदनीयमे संख्यातगुणा है । स्त्रीवेदमे संख्यातगुणा है। शोकमे विशेष अधिक है। B अ-का पत्योः ' असादयो', ताप्रतौ ' असादार' इति पाठः। अ-काप्रत्योर्नोग्लभ्यते पदमिदम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy