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छक्खंडागमे संतकम्मं
पसत्थाणं धुवबंधिणामा सम्मत्तद्धा सव्वरहस्सा कायव्वा, अण्णहा गुणिदत्ताणुववत्तदो । चदुक्खुत्तं कसाए उवसामेदूण खवणाए तस्स परभवियणामबंधवोच्छेदादो आवलियादिक्कतस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो । एवं थिर- सुभाणं । परघादुस्सास -पसत्थविहायगइ-तस -- बादर -- पज्जत्त - पत्तेयसरीराणं सुहाणामभंगो । - जसकित्तीए सुहाणामभंगो । णवरि परभवियणामाणं बंधवोच्छेदस्स चरिमसगए उक्कस्सओ पदेससंकमो कायव्वो ।
एइंदिय - आदाव थावरणामाणं उक्कस्सओ पदेससंकमो कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ ईसाणदेवे पच्छायदो साइं पि अणुवसामिदकसाओ सव्वलहुं खवणाए अभुट्टो, तस्स चरिमसमयसंछुहमाणयस्स उक्कस्सओ पदेससंकमो । उज्जोवणामाए वि ईसाणदेवपच्छायदे खवगे सव्वसंकमेण संकामेंतए उक्कस्ससामित्तं दादव्वं । किं कारणं? तसजादिणामाओ बहुआओ पयडीओ बंधदि, एइंदियजादिणामाओ थोवाओ बंधदि । तदो रइयो तसजादिणामपडिभागं बंधदि उज्जोवणामं, ईसाणदेवा पुण
प्रशस्त ध्रुवबन्धी नामकर्मीका सम्यक्त्वकाल सबसे हृस्य करना चाहिये, क्योंकि, इसके विना गुणितत्व बन नहीं सकता । चार बार कषायोंको उपशमा कर जो क्षपणामें उद्यत होता हँ उसके परभविक नामकर्मोंको बन्धव्युच्छित्तिके पश्चात् आवली मात्र कालके वीतनेपर उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । इसी प्रकार स्थिर और शुभ प्रकृतियोंके विषय में कहना चाहिये ।
परघात, उच्छवास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त और प्रत्येकशरीरकी प्ररूपणा शुभ नामकर्मके समान है । यशकीर्तिकी भी प्ररूपणा शुभ नामकर्मके समान है । विशेषता इतनी है कि उसला उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम परभविक नामोंकी बन्धव्युच्छित्तिके अन्तिम समयमें करना चाहिये ।
केन्द्र, आप और स्थावर नामकर्मोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम किसके होता है? जो गुणितकर्माशिक ईशान देव देवपर्यायसे पीछे आकर एक बार भी कषायोंको न उपशमा कर सर्वलघु कालमें क्षपणामें उद्यत होता है उसके निक्षेपण करते हुए अन्तिम समयमें उनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । ईशानकल्पगत देवपर्यायसे पीछे आकर सर्वसंक्रमके द्वारा उद्योत नामकर्मका संक्रमण करनेवाले क्षपकके उसके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका स्वामित्व देना चाहिये ।
इसका कारण क्या है ?
समाधान- त्रसजाति नामकर्मोको बहुत बांधता है और एकेन्द्रियजाति नामकर्भीको स्तोक बांधता है । इसलिये नारक जीव उद्योत नामकर्मको त्रसजाति नामकर्मके प्रतिभाग रूप है, परन्तु ईशान देव उसको ही एकेन्द्रियजाति नामकर्मके प्रतिभाग रूप बांधते है ।
प्रतिषु 'धुबबंधविणाणं इति पाठः । अप्रतो' गुणदत्ता', तातो 'गुण (णि) दत्ता-' इति पार: । थावर तज्जा- आग्राबुज्जोयाओ नपुंसगसमाओ । क. प्र. २, ९२. ताप्रती 'पर्याडभागं' इति पाठः । तातो 'बंधदि, उज्जोवणामं ईसाणदेवा, पुण ' इति पाठः ।
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