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________________ ५२ ) छक्खंडागमे संतकम्म उदीरओ उवसंतकसाओ हेट्ठा ओदरिय सुहुमसांपराइयो होदूण छव्विहउदीरगो जादो, बिदियसमए भुजगारउदीरणा अवट्ठिदउदीरणाए अंतरिदा, तदियसमए कालं कादूण देवेसुप्पज्जिय अट्ठ उदीरयमाणो भुजगारं गदो, एवमेगसमयअंतरदसणादो। उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि समऊणाणि । तं जहा--तेत्तीससागरोवमेसु उप्पण्णपढमसमए भुजगारं कादूण समऊणतेत्तीससागरोवमाणि अवट्ठिद-अप्पदरउदीरणाए अंतरिय मणुस्सेसु उप्पण्णपढमसमए कयभुजगारस्स समऊणतेत्तीसं सागरोवमाणि उक्कस्सभुजगारंतरं होदि । एवमप्पदरउदीरणाए वि वत्तव्वं । कुदो ? आवलियकालेण देवेसुप्पज्जिहदि त्ति पुव्वं चेव अप्पदरं काऊण अंतरिय देवेसुप्पज्जिय आवलियूणतेत्तीससागरोवमाणि गमिय अप्पदरे कदे तदुवलंभादो। अधवा अप्पदरस्स उक्कस्सं अंतरं तेत्तीससागरोवमाणि अंतोमुहुत्तेण सादिरेयाणि । अवट्ठिदउदीरणाए जहण्णण अंतरमेगसमओ, उक्कस्सेण बे समया। एवं भुजगारंतरं समत्तं । णाणाजीवेहि* भंगविचओ। वेदएसु पयदं--भुजगार-अप्पदर-अवट्टिदउदीरया णियमा अत्थि, अवत्तव्वं णत्थि । एवमोघो समत्तो। सेसासु गदीसु जाणिदूण वत्तव्वं । एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो। प्राप्त कषाय जीव नीचे उतर कर सक्षमसाम्परायिक होकर छह कर्मोंका उदीरक हआ, द्वितीय समयमें भलाकार उदीरणा अवस्थित उदीरणासे अन्तरको प्राप्त हई. ततीय समयमें मत होकर देवोंमें उत्पन्न हो आठ कर्मोको उदीरणा करता हआ भजाकर उदीरणाको प्राप्त हआ, इस प्रकार भजाकार उदीरणाका एक समय अन्तर देखा जाता है। उत्कर्षसे एक समय कम तेतीस रोपम प्रमाण अन्तर होता है। वह इस प्रकारसे--तेतीस सागरोपम प्रमाण आय वालोंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें भुजाकार उदीरणाको करके एक समय कम तेतीस सागरोपम तक अवस्थित या अल्पतर उदीरणासे अन्तरको प्राप्त हो मनुष्योंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समय भुजाकर उदीरणाको करनेपर एक समय कम तेतीस सागरोपम प्रमाण भुजाकर उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तर होता है । इसी प्रकार अल्पतर उदीरणाके विषयमे भी कहना चाहिये, क्योंकि, आवली प्रमाण कालके बाद देवोंमें उत्पन्न होगा, इस प्रकार पूर्व में ही अल्पतर उदीरणा करके अन्तरको प्राप्त हो देवोंमें उत्पन्न होकर आवलीसे कम तेतीस सागरोपमोंको विताकर अल्पतर उदीरणा करनेपर उक्त अन्तर पाया जाता है । अथवा, अल्पतर उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्तसे अधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण है । अवस्थित उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय है । इस प्रकार भुजाकार उदीरणाका अन्तर समाप्त हुआ। नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय । वेदक प्रकृत हैं-- भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरक नियमसे हैं, अवक्तव्य उदीरक नहीं हैं। इस प्रकार ओघ समाप्त हुआ। शेष गति आदिकोंके विषयमें जानकर कथन करना चाहिये। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय समाप्त हुआ। o काप्रती ' अप्प० उ० अमरिय, ' ताप्रती 'अप० उ० अंतरं' इति पाठः । * काप्रतौ 'गाजीवेण ' इति पाठः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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