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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे भुजगरादीणमंतरं ( ५१ अवट्टिउदीरणा । अणुदीरणाओ उदीरेंतस्स * अवत्तव्वउदीरणा । एदेण अट्ठपदेण उवरिमअहियारा वत्तव्वा । सामित्तं - भुजगारउदीरओ, अप्पदरउदीरओ अवट्ठिदउदीरओ च को होदि ? अण्णदरो मिच्छाइट्ठी सम्माइट्ठी वा । अवत्तव्वउदीरया * णत्थि । एवं सामित्तं समत्तं ? । एयजीवेण कालो - भुजगार- अप्पदरउदीरयाणं जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण बे समया । तं जहा - उवसंतकसाए सुहुमसांपराइए जादे छ उदीरेंतस्स एगो भुजगारसमओ । पुणो बिदियसमए कालं काढूण देवे सुप्पण्णस्स पढमसमए अट्ठ उदीरेंतस्स बिदिओ भुजगारसमओ । एवं भुजगारस्स बे समया । पमत्तसंजदचरिमसमए आउए उदयावलियं पविट्ठे सत्त उदीरंतस्स एगो अप्पदरसमओ । तदो बिदियसमए अप्पमत्तगुणे पविणे वेदणीएण विणा छ उदीरेंतस्स बिदिओ अप्पदरसमओ । एवमप्पदर उदीरणाए वि उक्कस्सेण बे चैव समया । अवट्टिदउदीरणाए कालो जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि समयाहियाए आवलियाए ऊणाणि, देवे सुप्पण्णपढमसमओ मरणावलिया च । एवं भुजगारकालो समत्तो । भुजगार उदीरणाए अंतरं जहण्णेण एक्को वा दो वा समया । कुदो? पंचविहअवक्तव्य उदीरणा होती है । इस अर्थपदके अनुसार आगेके अधिकारोंका कथन करना चाहिये । स्वामित्व - भुजाकार उदीरक, अल्पतर उदीरक और अवस्थित उदीरक कौन होता है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि अथवा सम्यग्दृष्टि जीव उनका उदीरक होता है । अवक्तव्य उदीरक नहीं हैं । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । एक जीवकी अपेक्षा काल -- भुजाकार और अल्पतर उदीरकोंका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय प्रमाण है । वह इस प्रकारसे -- उपशान्तकषाय जीवके सूक्ष्मसाम्परायिक होकर छह प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेपर भुजाकार उदीरणाका एक समय प्राप्त होता है । पश्चात् द्वितीय समय में मृत्युको प्राप्त होकर देवोंमें उत्पन्न हुए उक्त जीवके प्रथम समयमें आठ कर्मोकी उदीरणा करनेपर भुजाकार उदीरणाका द्वितीय समय प्राप्त होता है । इस प्रकार भुजाकार उदीरणाका उत्कृष्ट काल दो समय है । प्रमत्तसंयत गुणस्थानके अन्तिम समयमें आयुके उदयावली में प्रविष्ट होनेपर सात कर्मोंकी उदीरणा करनेवालेके अत्पतर उदीरणाका एक समय काल होता है । पश्चात् द्वितीय समयमें अप्रमत्त गुणस्थानको प्राप्त होनेपर वेदनीयके विना छकी उदीरणा करनेवाले के अल्पतर उदीरणाका द्वितीय समय पाया जाता है । इस प्रकार अल्पतर उदीरणाके भी उत्कर्षसे दो ही समय हैं । अवस्थित उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक समय अधिक आवली से हीन तेतीस सागरोपम प्रमाण है । यहां एक समय और एक आवलीसे देवोंमें उत्पन्न होनेका प्रथम समय और मरणावली ली गई है । इस प्रकार काल समाप्त हुआ । भुजाकार उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक व दो समय है, क्योंकि, पांच कर्मोंका उदीरक * ताप्रती 'उदीरंतस्स' इति पाठः । प्रत्योरुभयोरेव 'अवत्तव्वत्तउदीरणा' इति पाठः । ताप्रती ' अवद्विद (अवत्तन्त्र ) उदीरया इति पाठः । ताप्रतौ 'समत्तं ' इत्येतत् पदं नोपलभ्यते । काप्रती ' काले' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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