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________________ ४२ ) छवखंडागमे संतकम्मं क्कमभेण । उवक्कमअणुयोगद्दारजाणगो उवजुत्तो आगमभावोवक्कमो - जहा पाहुडमुवक्कतं, पुव्वं वत्थू वा उवक्कतं । ओदइयादिभावोवक्कमो णोआगमभावोवक्कमो णाम । एत्थ एदेसु उवक्कमेसु केण पयदं ? कम्मोवक्कमेण पयदं । जो सो कम्मोवक्कमो सो चउव्विहो- बंधणउवक्कमो उदीरणउवक्कमो उवसामणउवक्कमो विपरिणामउवक्कमो चेदि । पक्कम उवक्कमाणं को भेदो ? पयडि-ट्ठिदि-अणुभागेसु ढुक्कमाण पदेसग्गपरूवणं * पक्कमो कुणइ, उवक्कमो पुण बंधबिदियसमयप्पहूडि संतसरूवेण ट्ठिदकम्मपोग्गलाणं वावारं परूवेदि । तेण अत्थि विसेसो । जो सो बंधणवक्कमो सो चउव्विहो- पर्याडबंधण उवक्कमो, ठिदिबंधणउवक्कमो अणुभागबंधनउवक्कमो, पदेसंबंधणउवक्कमो चेदि । जीवपदेसेहि खीर-णीरं व अण्णोष्णाणुगयपयडीणं बंधक्कमपरूवणं पयडिबंधणउवक्कमो णाम । तो संतपयडीण मेगसमयादि जाव सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ त्ति कम्मभावेणावट्ठाण कालपरूवणं ट्ठिदिबंधणवक्कमो णाम । तासि चेत्र संतपयडीणमणुभागस्ग जीवेण सह एयत्तं गयस्स फद्दय- वग्ग - वग्गणा - ट्ठाणाविभागपडिच्छेदादिपरूवणा अणुभागबंधण उवक्कमो नाम । तासि चेव पयडीणं खविद-गुणिदकम्मंसिय-तग्घोलमाणे अस्सिदूण संचिद उपयोग युक्त जीव आगमभाव उपक्रम कहलाता है। जैसे- प्राभृत उपक्रान्त हुआ, पूर्व उपक्रान्त हुआ अथवा वस्तु उपक्रान्त हुई । औदयिक आदि भावोंके उपक्रमको नोआमगभावोपक्रम कहते हैं । शंका-- इन उपक्रमोंमें यहां कौनसा उपक्रम प्रकृत है ? समाधान -- यहां कर्मोपक्रम प्रकृत है । जो वह कर्मोपक्रम है वह चार प्रकारका है -- बन्धन- उपक्रम, उदीरणा - उपक्रम, उपशामना - उपक्रम और विपरिणाम - उपक्रम | शंका -- प्रक्रम और उपक्रममें क्या भेद है ? समाधान -- प्रक्रम अनुयोगद्वार प्रकृति, स्थिति और अनुभाग में आनेवाले प्रदेशाग्रकी प्ररूपणा करता है; परन्तु उपक्रम अनुयोगद्वार बन्धके द्वितीय समयसे लेकर सत्त्वस्वरूपसे स्थित कर्म - पुद्गलोंके व्यापारकी प्ररूपणा करता है । इसलिये उन दोनों में विशेषता है । जो वह बन्धन- उपक्रम है वह चार प्रकारका है - प्रकृतिबन्धन उपक्रम, स्थितिबन्धन- उपक्रम, अनुभागबन्धन- उपक्रम और प्रदेशबन्धन - उपक्रम । दूधके साथ पानीके समान जीवप्रदेशों के साथ परस्परमें अनुगत ( एकरूपताको प्राप्त ) प्रकृतियों के बन्धके क्रमकी प्ररूपणा करने को प्रकृतिबन्धन - उपक्रम कहते हैं । अनन्तर उन सत्वरूप प्रकृतियों के एक समयसे लेकर सत्तर asrafs सागरोपम काल तक कर्मस्वरूपसे रहनेके कालकी प्ररूपणाको स्थितिबन्धन - उपक्रम कहते हैं। उन्हीं सत्त्वप्रकृतियोंके जीवके साथ एकताको प्राप्त हुए अनुभाग सम्बन्धी स्पर्द्धक, वर्ग, वर्गणा, स्थान और अविभागप्रतिच्छेद आदिकी प्ररूपणाका नाम अनुभागबन्धन- उपक्रम है । उन्हीं प्रकृतियोंके क्षपितकर्माशिक, गुणितकर्माशिक, क्षपितघोलमान और गुणितघोलमान जीवों काप्रतौ ' दुः कमण ' इति पाठः । ताप्रतौ ' ( तो ) संतपयडीण' Jain Education International काप्रती 'परूवण ' तानी' परूवणा ( णं ' इति पाठ: इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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