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छवखंडागमे संतकम्मं
क्कमभेण । उवक्कमअणुयोगद्दारजाणगो उवजुत्तो आगमभावोवक्कमो - जहा पाहुडमुवक्कतं, पुव्वं वत्थू वा उवक्कतं । ओदइयादिभावोवक्कमो णोआगमभावोवक्कमो णाम । एत्थ एदेसु उवक्कमेसु केण पयदं ? कम्मोवक्कमेण पयदं । जो सो कम्मोवक्कमो सो चउव्विहो- बंधणउवक्कमो उदीरणउवक्कमो उवसामणउवक्कमो विपरिणामउवक्कमो चेदि । पक्कम उवक्कमाणं को भेदो ? पयडि-ट्ठिदि-अणुभागेसु ढुक्कमाण पदेसग्गपरूवणं * पक्कमो कुणइ, उवक्कमो पुण बंधबिदियसमयप्पहूडि संतसरूवेण ट्ठिदकम्मपोग्गलाणं वावारं परूवेदि । तेण अत्थि विसेसो । जो सो बंधणवक्कमो सो चउव्विहो- पर्याडबंधण उवक्कमो, ठिदिबंधणउवक्कमो अणुभागबंधनउवक्कमो, पदेसंबंधणउवक्कमो चेदि । जीवपदेसेहि खीर-णीरं व अण्णोष्णाणुगयपयडीणं बंधक्कमपरूवणं पयडिबंधणउवक्कमो णाम । तो संतपयडीण मेगसमयादि जाव सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ त्ति कम्मभावेणावट्ठाण कालपरूवणं ट्ठिदिबंधणवक्कमो णाम । तासि चेत्र संतपयडीणमणुभागस्ग जीवेण सह एयत्तं गयस्स फद्दय- वग्ग - वग्गणा - ट्ठाणाविभागपडिच्छेदादिपरूवणा अणुभागबंधण उवक्कमो नाम । तासि चेव पयडीणं खविद-गुणिदकम्मंसिय-तग्घोलमाणे अस्सिदूण संचिद
उपयोग युक्त जीव आगमभाव उपक्रम कहलाता है। जैसे- प्राभृत उपक्रान्त हुआ, पूर्व उपक्रान्त हुआ अथवा वस्तु उपक्रान्त हुई । औदयिक आदि भावोंके उपक्रमको नोआमगभावोपक्रम कहते हैं । शंका-- इन उपक्रमोंमें यहां कौनसा उपक्रम प्रकृत है ?
समाधान -- यहां कर्मोपक्रम प्रकृत है ।
जो वह कर्मोपक्रम है वह चार प्रकारका है -- बन्धन- उपक्रम, उदीरणा - उपक्रम, उपशामना - उपक्रम और विपरिणाम - उपक्रम |
शंका -- प्रक्रम और उपक्रममें क्या भेद है ?
समाधान -- प्रक्रम अनुयोगद्वार प्रकृति, स्थिति और अनुभाग में आनेवाले प्रदेशाग्रकी प्ररूपणा करता है; परन्तु उपक्रम अनुयोगद्वार बन्धके द्वितीय समयसे लेकर सत्त्वस्वरूपसे स्थित कर्म - पुद्गलोंके व्यापारकी प्ररूपणा करता है । इसलिये उन दोनों में विशेषता है ।
जो वह बन्धन- उपक्रम है वह चार प्रकारका है - प्रकृतिबन्धन उपक्रम, स्थितिबन्धन- उपक्रम, अनुभागबन्धन- उपक्रम और प्रदेशबन्धन - उपक्रम । दूधके साथ पानीके समान जीवप्रदेशों के साथ परस्परमें अनुगत ( एकरूपताको प्राप्त ) प्रकृतियों के बन्धके क्रमकी प्ररूपणा करने को प्रकृतिबन्धन - उपक्रम कहते हैं । अनन्तर उन सत्वरूप प्रकृतियों के एक समयसे लेकर सत्तर asrafs सागरोपम काल तक कर्मस्वरूपसे रहनेके कालकी प्ररूपणाको स्थितिबन्धन - उपक्रम कहते हैं। उन्हीं सत्त्वप्रकृतियोंके जीवके साथ एकताको प्राप्त हुए अनुभाग सम्बन्धी स्पर्द्धक, वर्ग, वर्गणा, स्थान और अविभागप्रतिच्छेद आदिकी प्ररूपणाका नाम अनुभागबन्धन- उपक्रम है । उन्हीं प्रकृतियोंके क्षपितकर्माशिक, गुणितकर्माशिक, क्षपितघोलमान और गुणितघोलमान जीवों
काप्रतौ ' दुः कमण ' इति पाठः । ताप्रतौ ' ( तो ) संतपयडीण'
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काप्रती 'परूवण ' तानी' परूवणा ( णं ' इति पाठ: इति पाठः ।
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