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सव्वं पिवत्थु पि विहि-पडिसेहप्पयं ति घेत्तव्वं, अण्णहा कज्ज-कारणभावविरोहादों । वृत्तं च-
छक्खंडागमे संतकम्मं
न सामान्यात्मनोदेति न व्येति व्यक्तमन्वयात् । व्येत्युदेति विशेषात् सहैकत्रोदयादि सत् ।। १० ।।
भावैकान्ते पदार्थांनामभावानामपह्नवात् ।
सर्वात्मकमनाद्यन्तमस्वरूपमतावकम्
नियम करनेवाले के दहीका ग्रहण तथा दहीका नियम करनेवालेके दूधका ग्रहण करना अनुचित ठहरेगा । उसी प्रकार अन्वय प्रत्ययके विषयभूत गोरस सामान्यसे भी दूध व दही रूप विशेषोंको यदि सर्वथा भिन्न स्वीकार किया जाय तो गोरस-भिन्न भोजनका नियम करनेवालेके उन दोनोंका त्याग करना अयुक्तिसंगत होगा । परन्तु ऐसा है नहीं, अतएव सिद्ध है कि वस्तुतत्त्व अनेकातसे अनुगत होकर उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य स्वरूप ही है ।
कोई भी वस्तु सामान्य स्वरूपसे न उत्पन्न होती है और न नष्ट भी होती है, क्योंकि, इनमें सामान्य स्वरूपसे स्पष्टतया अन्वय देखा जाता है । किन्तु वही विशेष स्वरूपसे नष्ट भी होती है और उत्पन्न भी होती है । हे भगवन् ! इस प्रकार आपके मतमें एक ही वस्तुमें उत्पादादि तीनों ही एक साथ रहते हैं । इन्हीं तीनोंसे युक्त वस्तुको सत् कहा जाता है ॥ १० ॥
विशेषार्थ -- पूर्वोत्तर पर्यायोंमें रहनेवाले साधारण स्वभावका नाम सामान्य है, जैसे सुवर्णसे उत्तरोत्तर होनेवाली कटक व कुण्डलादि रूप पर्यायोंमें सुवर्णसामान्य । इसकी अपेक्षा वस्तुका उत्पाद व विनाश सम्भव नहीं है, क्योंकि, कटकरूप पर्यायका नाश होकर कुण्डल रूप पर्याय के उत्पन्न होनेपर भी 'यह वही सुवर्ण है जिसके पहिले कटक बनवाये गये थे ' ऐसा अन्वय प्रत्यय पाया जाता है। उत्पाद व विनाश केवल विशेष (पर्याय) की अपेक्षा होता है । यदि कटक व कुण्डल रूप आकारके समान सुवर्णद्रव्यका भी विनाश व उत्पाद हुआ तो उन दोनोंमें समान रूपसे सुवर्णत्वका बोध नहीं हो सकता था । परन्तु होता अवश्य है, अतः सिद्ध है कि सामान्य स्वरूपसे वस्तु उत्पाद-व्ययसे रहित होकर कथंचित् नित्य और वही विशेषकी अपेक्षा कथंचित् अनित्य भी है । ये सामान्य और विशेष धर्म भी परस्पर सापेक्ष रहते हैं, न कि निरपेक्ष । इस प्रकार उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य ये तीनों ही वस्तुमें एक साथ पाये जाते हैं । इन्हीं तीनोंसे युक्त वस्तुको सत् कहा जाता है और यही द्रव्यका लक्षण है ।
आ. मी.५७.
॥। ११ ॥
सभी वस्तु विधि-प्रतिषेधात्मक है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये; क्योंकि, इसके विना कार्य-कारणभावका विरोध है । कहा भी है
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अस्तित्वविषयक एकान्त पक्षमें अभावोंका अपलाप होनेसे दूसरोंके मत में पदार्थो सर्वरूपता, अनादिता, अनन्तता और अस्वरूपताका प्रसंग आता है ।। ११ ।। *
विशेषार्थ -- सांख्योंका अभिमत है कि सब पदार्थ सत्स्वरूप ही हैं, कोई भी असत् ( अभाव ) स्वरूप नहीं हैं । उनमें जो परावर्तित अवस्थायें देखी जाती हैं वे आविर्भाव व तिरोभावके कारण होती हैं । उनके यहां निम्न २५ तत्त्व स्वीकार किये गये हैं- पुरुष, प्रकृति,
महान्
आ. मी ९.
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