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णिबंधणाणुयोगद्दारे खणक्खइत्तणिरासो
( २५ एत्य पुव्वुत्तदोसा संभवंति, एयंतविसयाणं दोसाणमणेयंते संभवविरोहादो। को अणेयंतो णाम? जच्चंतरत्तं। उप्पत्ती णाम ण परदो, अणवत्थापसंगादो। ण सदो, असंतस्स कारणत्ताणुववत्तीदो। दोसइ च सव्वत्थाणं सत्तं, तदो णिच्चा सव्वत्था त्ति पत्थि कज्जुप्पत्ती? ण एस दोसो, पमाणगोयरमइक्कंतस्स णिच्चत्थस्स अत्थित्तविरोहादो। णिच्चत्थो पमाणविसयमइक्कतो, अक्कमेण कमेण वा तत्थ कम्म-कत्तारपज्जायाणमभावादो, भावे च अणिच्चत्तप्पसंगादो। ण च कज्जं परदो चेव उप्पज्जदि सदो वा, दव्व-खेत्त-काल-भावे पडुच्च उप्पज्जमाणकज्जुवलंभादो। ण च पमाणेण विसईकयत्थो पमाणपडिकूलदाए , अवगयअप्पमाणत्तेहि वियप्पाभासेहि अण्णहा काउं सक्किज्जदि, अव्ववत्थापसंगादो।
वत्थुविणासो ण परदो होदि, पसज्ज-पज्जुदासलक्खणअभावाणमणेहितो उप्पत्ति
यहां पूर्वोक्त ( सत् व असत् एकान्त पक्षमें दिये गये ) दोषोंकी भी सम्भावना नहीं है, क्योंकि, एकान्तको विषय करनेवाले दोषोंकी अनेकान्तके विषयमें सम्भावना नहीं है ।
शंका-- अनेकान्त किसे कहते हैं ? समाधान-- जात्यन्तरभावको अनेकान्त कहते हैं ।
शंका-- उत्पत्ति किसी दूसरेसे नहीं हो सकती, क्योंकि, ऐसा होनेपर अनवस्थाका प्रसंग आता है । ( अर्थात् विवक्षित घटादि कार्योंकी उत्पत्ति जिस किसी दूसरेसे होती हैं, वह भी अन्य किसी दसरेसे ही उत्पन्न होगा। इस प्रकार उत्तरोत्तर कल्पना करनेपर व्यवस्था नहीं बनेगी, इसलिये अनवस्था दोष सम्भव है।) यदि कहा जाय कि कार्य किसी दूसरेसे उत्पन्न न होकर स्वतः उत्पन्न होता है, तो यह भी सम्भव नहीं है; क्योंकि, असत् पदार्थके कारणता बन नहीं सकती। और चंकि सब पदार्थों का सत्त्व देखने में आता है, इसीलिये समस्त पदार्थोके नित्य होनेसे कार्यकी उत्पत्ति सम्भव नहीं है ?
समाधान-- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, नित्य पदार्थ चूंकि प्रमाणगोचर नहीं है, अर्थात् प्रत्यक्ष व अनुमानादि किसी भी प्रमाणसे सिद्ध नहीं है, अत एव उसके अस्तित्वका विरोध है। नित्य अर्थ प्रमाणका विषय नहीं है, क्योंकि, युगपत् अथवा क्रमसे उसमें कर्म व कर्ता रूप पर्यायोंका अभाव है। और यदि उनका सद्भाव है तो फिर उसके अनित्य होनेका प्रसंग आता है। इसके अतिरिक्त कार्य परसे ही उत्पन्न होता हो अथवा स्वतः ही उत्पन्न होता हो, यह बात भी नहीं है; क्योंकि, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावका आश्रय करके उत्पन्न होनेवाला कार्य पाया जाता है । दूसरे, प्रमाणके प्रतिकूल होनेसे जिनकी अप्रमाणता ज्ञात हो चुकी है ऐसे विकल्पाभासों ( परत: उत्पन्न हैं या स्वतः उत्पन्न हैं, इत्यादि ) के द्वारा प्रमाणसे विषय किया गया पदार्थ अन्यथा करनेके लिये शक्य नहीं है, क्योंकि, इस प्रकारसे अव्यवस्थाका प्रसंग आता है।
शंका-- वस्तुका विनाश परके निमित्तसे नहीं होता है, क्योंकि, प्रसज्य व पर्युदासरूप
४ काप्रती ' पडिकुलदाए' इति पाठ: ।
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