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________________ पक्कमाणुयोगद्दारे सत्तभंगपरूबणा ( २३ कज्जुप्पायणत्तविरोहादो। अविरोहे वा, सससिंगादो वि ससी समुप्पज्जेज्ज, अभावं पडि विसेसाभावादो। ण च विणस्संतमुप्पादेदि, विणट्ठाविणटुभावे मोत्तूण विणस्संतभावस्स तइज्जस्स अणुवलंभादो । तदो णासंतं पि कज्जमुप्पज्जदि । गोभयसरूवं कज्जमुप्पज्जइ, विरोहादो उभयपक्खदोसप्पसंगादो वा । णाणुभयपक्खो वि, णीरूवस्स उप्पत्तिविरोहादो। ण च कज्जाभावो, उवलब्भमाणस्स अभावविरोहादो। तदो सिया सतं, सिया असंतं, सिया अवत्तव्वं, सिया संतं च असंतं च, सिया संतं च अवत्तव्वं च, सिया असंतं च अवत्तव्वं च, सिया संतं च असंतं च अवत्तव्वं च कज्जमुप्पज्जदि त्ति पिच्छओ कायव्वो; अण्णहा पुव्वुत्तदोसप्पसंगादो। एदेसि भंगाणमत्थो वुच्चदे । तं जहा-कज्जं सिया संतमुप्पज्जदि। पोग्गलभावेण मट्टियादिवंजणपज्जाएहि य संतस्स दव्वस्स घडपज्जाएण उप्पत्तिदसणादो । सिया असंतमुप्पज्जइ, पिंडागारेण णटुस्त पोग्गलदव्वस्स घडभावेण उत्पत्तिदसणादो । सिया अवत्तव्वं कज्जमुप्पज्जइ, पोग्गलदव्वस्स अत्यपज्जाएहि वयगविसयमइक्कंतस्स घडभावेणुप्पत्तिदसणादो, विहि-- पडिसेहधम्माणं सगसरूवापरिच्चाएग अण्णोण्णाणुगयत्तादो जच्चंतरहै । और यदि इस विरोधको नहीं माना जाता है, तो फिर खरगोशके सींगसे भी चन्द्रमा उत्पन्न हो जाना चाहिये, क्योंकि, अभावकी अपेक्षा उनमें कोई विशेषता नहीं है। विनष्ट होता हुआ वह कार्यको उत्पन्न करता है, यह पक्ष भी असंगत है; क्योंकि, विनष्ट और अविनष्ट पदार्थोंको छोड़कर तीसरा कोई विनश्यमान पदार्थ पाया नहीं जाता। इस कारण सत् कार्यके समान असत् कार्य भी उत्पन्न नहीं हो सकता है। यदि कहा जाय कि उभय ( सत्-असत् ) स्वरूप कार्य उत्पन्न होता है, सो यह भी सम्भव नहीं है; क्योंकि, उसमें विरोध आता है । अथवा, उभय पक्षमें दिये गये दोषोका प्रसंग अनिवार्य होगा । अनुभव ( न सत् न असत् ) पक्ष भी नहीं बनता, क्योंकि, वैसी अवस्था में निःस्वरूप होनेसे उसकी उत्पत्तिका विरोध है । यदि कार्यका ही अभाव स्वीकार किया जाय तो यह भी अनचित होगा, क्योंकि, जो प्रत्यक्षादिसे उपलभ्यमान है उसका अभाव मानने में विरोध आता है । इस कारण कथंचित् सत्, कथंचित् असत् कथंचित् अवक्तव्य, कथंचित् सत् व असत्, कथंचित् सत् व अवक्तव्य, कथंचित् असत व अवक्तव्य, तथा कथंचित् सत् व असत् और अवक्तव्य कार्य उत्पन्न होता है ऐसा निश्चय करना चाहिये ; क्योंकि, इसके बिना एकान्त पक्षोंमें दिये गये पूर्वोक्त दोषोंका प्रसंग अनिवार्य है। ___ इन भंगों का अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है-कार्य कथंचित् सत् उत्पन्न होता है। क्योंकि, पुद्गल स्वरूपसे और मृत्तिका आदि व्यञ्जन पर्यायरूपसे भी सत् द्रव्यकी घट पर्याय स्वरूपसे उत्पत्ति देखी जाती है । कथंचित् वह असत् उत्पन्न होता है, क्योंकि, पिण्डरूप आकारसे नष्ट हुए पुद्गल द्रव्यको घट स्वरूपसे उत्पत्ति देखी जाती है । कथंचित् अवक्तव्य कार्य उत्पन्न होता है, क्योंकि, अर्थ पर्यायों को अपेक्षा वचनके अविषयभूत पुद्गल द्रव्यकीघट स्वरूपसे उत्पत्ति देखी जाती है, अथवा अपने स्वरूपको न छोड़कर परस्परमें अनुगत होनेसे जात्यन्तर भावको प्राप्त हुए विधि-प्रतिषेध धर्मोको कहनेवाले शब्दका अभाव है, इसलिये भी कार्य अवक्तव्य उत्पन्न होता है। .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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