________________
छवखंडागमे संतकम्म
तत्व णाणावरणं सव्ववन्वेसु णिबद्धं गोसवपज्जाएस । १।
सव्वदव्वेसु णिबद्धं ति केवलणाणावरणमस्सिदूण भणिदं । कूदो? तिकालविसयअणंतपज्जायभरिदछदव्वविसयकेवलणाणविरोहित्तादो। णोसव्वपज्जाएसु ति वयण सेसणाणावरणाणि पडुच्च भणिदं, सेसणाणाणं सव्वदव्वग्गहणसत्तीए अभावादो। मदिसुदणाणाणं सव्वदव्व विसयत्तं किण्ण वुच्चदे, तासि मुत्तामुत्तासेसदव्वेसु वावारुवलंभादो ? ण एस दोसो, तेसि दवाणमणंतेसु पज्जाएसु तिकालविसएसु तेहि सामण्णेणावगएसु विसेसरूवेण वावाराभावादो। भावे वा केवलणाणेण समाणतं तेसि पावेज्ज । ण च एवं, पंचणाणुवदेसस्स अभावप्पसंगादो। णोसद्दो सव्वपडिसेहओ* त्ति किण्ण घेप्पदे ? ण, णाणावरणस्साभावस्स पसंगादो, सुवक्यणविरोहादो च । तम्हा णोसद्दो देसपडिसेहओ त्ति घेत्तव्वं ।
एवं दसणावरणीयं ॥ २ ॥
उनमें ज्ञानावरण सब द्रव्योंमें निबद्ध है और नो सर्व पर्यायोंमें अर्थात् असर्व पर्यायोंमें ( कुछ पर्यायोंमें ) वह निबद्ध है ॥१॥
'सब द्रव्योंमें निबद्ध है' यह केवलज्ञानावरणका आश्रय करके कहा गया है, क्योंकि, वह तीनों कालोंको विषय करनेवाली अनन्त पर्यायोंसे परिपूर्ण ऐसे छह द्रव्योंको विषय करनेवाले केवलज्ञानका विरोध करनेवाली प्रकृति है । ' असर्व ( कुछ ) पर्यायोंमें निबद्ध है ' यह वचन शेष चार ज्ञानावरण प्रकृतियोंकी अपेक्षासे कहा गया है, क्योंकि, शेष चार ज्ञानोंमें सब द्रव्योंको ग्रहण करनेकी शक्ति नहीं पाई जाती ।
शंका-- मतिज्ञान व श्रुतज्ञान सब द्रव्योंको विषय करनेवाले हैं, ऐसा क्यों नहीं कहते; क्योंकि, उनका मूर्त व अमूर्त सब द्रव्यों में व्यापार पाया जाता है ?
समाधान--- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, उन द्रव्योंकी त्रिकालविषयक अनन्त पर्यायोंमें उन ज्ञानोंकी सामान्य रूपसे प्रवृत्ति है, विशेष रूपसे नहीं है। अथवा यदि उनमें उनकी विशेष रूपसे भी प्रवृत्ति स्वीकार की जाय तो वे दोनों ज्ञान केवलज्ञानकी समानताको प्राप्त हो जायेंगे। परन्तु ऐसा सम्भव नहीं है, क्योंकि, वैसा होनेपर पांच ज्ञानोंका जो उपदेश प्राप्त है उसके अभावका प्रसंग आता है ।
शंका-- 'नो' शब्दको सबसे प्रतिषेधक रूपसे क्यों नहीं ग्रहण किया जाता है ?
समाधान-- नहीं, क्योंकि, वैसा स्वीकार करनेपर एक तो ज्ञानावरणके अभावका प्रसंग आता है, दूसरे स्ववचनका विरोध भी होता है। इसलिये 'नो' शब्दको देशप्रतिषेधक ही ग्रहण करना चाहिये ।
इसी प्रकार दर्शनावरण भी सब द्रव्योंमें निबद्ध है और नोसर्वपर्यायोंमें अर्थात् असर्व पर्यायोंमें ( कुछ पर्यायोंमें ) वह निबद्ध है ॥२॥
४ काप्रती •णिबंधणं ', तापतो । णिबंधणं (णिबद्ध ) ' इति पाठः । . *काप्रती । सद्दपडिसेहओ, ' तापतो ' सद्द ( ब ) पडिसेहओ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org