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________________ ३३६ ) छक्खंडागमे संतकम्मं सरीर -- पंचसंघडण -- चदुआणुपुव्वी - आदावुज्जोव - थावर - सुहुम - - अपज्जत्त-साहारणअजसकित्ति - दूभग अणादेज्ज-णीचागोदाणमुक्कस्समवद्वाणं थोवं । वड्ढी असंखे० गुणा । हाणी विसे० । देव- णिरयाउअ-तित्थयरवज्जाणं सव्वकम्माणं पि जहण्णवड्ढि - हाणि - अवट्टणाणि तुल्लाणि, एगपदेसपमाणत्तादो । तित्थयरणामाए जह० हाणी अधापमकेवलगुणसे डिसीसएसु उदयमागदेसु । जह० वड्ढी दुसमयकेवलिस्स । तदो हाणी थोवा । जह० वड्ढी असंखे० गुणा । अवद्वाणं जहण्णमुक्कस्सं वा णत्थि । तित्थयरणामाए जह० हाणी थोवा । उक्क० हाणी विसेसा० । जह० वड्ढी असंखे० गुणा । उक्क० वड्ढी असंखे० गुणा । एवं पदणिक्खेवो समत्तो। एत्तो वड्ढि उदए अप्पाबहुए कदे तदो उदए त्ति अणुयोगद्दारं समत्तं होदि । असंख्यातगुणी है । वैक्रियिकशरीर, आहारकशरीर, पांच संहनन, चार आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अयशकीर्ति, दुर्भग, अनादेय और नोचगोत्रका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । वृद्धि असंख्यातगुणी है। हानि विशेष अधिक है । । देवायु, नारका और तीर्थकर प्रकृतियोंको छोड़कर सभी कर्मोंकी जघन्य वृद्धि हानि और अवस्थान तुल्य हैं; क्योंकि, वे एक प्रदेश प्रमाण हैं । तीर्थंकर नामकर्मकी जघन्य हानि अधःप्रवृत्त केवल गुणश्रेणिशीर्षकोंके उदयप्राप्त होनेपर होती है । उसकी जघन्य वृद्धि द्वितीय समयवर्ती केवली होती है । इस कारण उसकी हानि स्तोक है और जघन्य वृद्धि उससे असंख्यातगुणी है । उसका जघन्य व उत्कृष्ट अवस्थान नहीं है । तीर्थंकर प्रकृतिकी जघन्य हानि स्तोक है । उत्कृष्ट हानि विशेष अधिक है । जघन्य वृद्धि असंख्यातगुणी है । उत्कृष्ट वृद्धि असंख्यातगुणी । इस प्रकार पदनिक्षेप समाप्त हुआ । यहां वृद्धिउदय विषयक अल्पबहुत्व के करनेपर उदय-अनुयोगद्वार समाप्त होता है उदयानुयोगद्वार समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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