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________________ उदयानुयोगद्दारे पदेसोदय परूवणा ( ३३५ एतो अप्पा बहुअं- पंचणाणावरण- चउदंसणावरण-पंचंतराइयाणमुक्कस्समवट्ठाणं थोवं । क्या हाणी असंखेज्जगुणा । उक्कस्सिया वड्ढी असंखे ० गुणा । णिद्दा पयलाणं पि उक्कस्तमवद्वाणं थोवं । उक्क० हाणी असं० गुणा । वड्ढी असंखेज्जगुणा । णिद्दाणिद्दा - पयला-पयला-थीणगिद्धि-मिच्छत्ताणताणुबंधिच उक्काणमुक्कस्समवद्वाणं थोवं । वड्ढी असं० गुणा । हाणी विसेसा० । अट्ठण्णं कसायाणमुक्कस्समवद्वाणं थोवं । वड्ढी असंखे ० गुणा । हाणी विसेसा० । सम्मत्त - णवणोकसाय - चदुसंजलणाणं गाणावरणभंगो। सम्मामिच्छत्तस्स मिच्छत्तभंगो | देव- णिरयाउआणं उक्क० हाणी कस्स? दसवस्ससहस्साउट्ठी देव-रइएस उववण्णस्स दुसमयतन्भवत्थस्स । वड्ढी अवद्वाणं वा णत्थि । मणुस - तिरिक्खाउआणं उक्कस्समवद्वाणं थोवं । हाणी असंखे० गुणा । वड्ढी विसेसासाहिया । तिष्णं गइणामाणमुक्कस्समवद्वाणं थोवं । वड्ढी असंखे० गुणा । हाणी विसे० । मणुसगइणामाए उक्कस्समवद्वाणं थोवं । हाणी असंखे० गुणा । वड्ढी असंखे० गुणा ओरालिय सरीरणामाए मणुसगइभंगो | तेजा - कम्मइयसरीर छसंठाण- पढमसंघडणवण्ण-गंध-रस-- फास --- अगुरुअलहुअ-:--उवघाद--परघाद -- उस्सास -- पसत्थापसत्थविहायगइ - तस - बादर - पज्जत्त- पत्तेयसरीर--थिराथिर - सुहासुह - जसकित्ति - सुभगआदेज्ज --- सुस्सर --- दुस्सर --- णिमिणुच्चागोदाणं उक्कस्समवद्वाणं थोवं 1 असंखे ० गुणा । वड्ढी असंखे० गुणा 1 वे उब्विय --- आहार हाणी यहां अल्पबहुत्वका कथन करते हैं- पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तराय कर्मोंका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । उत्कृष्ट हानि असंख्यातगुणी है । उत्कृष्ट वृद्ध असंख्यातगुणी है । निद्रा व प्रचलाका भी उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । उत्कृष्ट हानि असंख्यात - गुण है । उत्कृष्ट वृद्धि असंख्यातगुणी है । निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधिचतुष्कका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । वृद्धि असंख्यातगुणी है । हानि विशेष अधिक है । आठ कषायोंका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । वृद्धि असंख्यातगुणी है । हानि विशेष अधिक है । सम्यक्त्व, नौ नोकषाय और चार संज्वलन कषायोंकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है । सम्यग्मिथ्यात्वकी प्ररूपणा मिथ्यात्व के समान है । देवायु और नारकायुकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? वह दस हजार वर्षकी आयुस्थितिसे युक्त देवों व नारकियोंमें उत्पन्न हुए जीवके तद्भवस्थ होने के द्वितीय समय में होती है । उनकी वृद्धि व अवस्थान नहीं है। मनुष्यायु और तिर्यगायुका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । हानि असंख्यातगुणी है | वृद्धि विशेष अधिक है । तीन गति नामकर्मोंका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । वृद्धि असंख्यातगुणी है । हानि विशेष अधिक है | मनुष्यगति नामकर्मका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । हानि असंख्यातगुणी हैं । वृद्धि असंख्यातगुणी है । औदारिकशरीर नामकर्मकी प्ररूपणा मनुष्यगतिके समान है । तैजसशरीर, कार्मणशरीर, छह संस्थान, प्रथम संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशकीर्ति, सुभग, आदेय, सुस्सर, दुस्वर, निर्माण और उच्चगोत्र ; इनका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । हानि असंख्यातगुणी है । वृद्धि Jain Education International For Private www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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