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________________ ३१८ ) छक्खंडागमे संतकम्म यंतराइय० विसे० । भय-दुगुंछा० विसे० । हस्स-सोग विसे० । रदि-अरदि० विसे०। मणपज्जव० विसे० । ओहिणाण० विसे० । सुदणाण. विसे । मदिणाण. विसे । ओहिदसण. विसे० । अचक्खु० विसे० । चक्खु० विसे० । संजलणाणं अण्णयरस्स विसे । णीचागोद० विसे० । सादासाद० विसेसाहिओ । एवमसण्णीसुक्कस्सपदेसुदयदंडओ समत्तो। एत्तो जहण्णगो- जहण्णपदेसुदओ मिच्छत्ते थोवो। सम्मामिच्छत्ते असंखे० गुणो। सम्मत्ते असंखे० गुणो। अपच्चक्खाण असंख० गुणो। पच्चक्खाण० विसे०। अणंताणुबंधि० असंखे० गुणो। पयलापयला० असंखे० गुणो। णिद्दाणिद्दाए विसे०। थोणगिद्धी० विसे०। केवलणाण० विसे०। पयलाए विसे० । णिद्दाए विसे० । केवलदसण. विसे० । दुगुंछा० अणंतगुणो। भय० विसे०। हस्स० विसे०। रदि० विसे०। पुरिसवेद० विसे। संजलणस्स अण्णदरस्स विसे० । ओहिणाण. असंखे० गुणो ओहिदसण विसे० । णिरयाउ० असंखे० गुणो। णेदं जुज्जदे, एइंदियसमयपबद्धमेत्तओहिदंसणावरण-जहण्णुदयादो अंगुलस्स असंखेज्जदिभागेणोवट्टिदएगसमयपबद्धमेत्तणिरयाउअजहण्णुदयस्स भोगान्तरायका विशेष अधिक है। परिभोगान्त रायका विशेष अधिक है। वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है । भय और जुगुप्साका विशेष अधिक है । हास्य व शोकका विशेष अधिक है। रति व अरतिका विशेष अधिक है । मनःपर्ययज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरणका विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है। अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है। संज्वलन कषायोंमें अन्यतरका विशेष अधिक है । नीचगोत्रका विशेष अधिक है । साता व असाता वेदनीयका विशेष अधिक है । इस प्रकार असंज्ञी जीवोंमें उत्कृष्ट प्रदेशोदय-दण्डक समाप्त हुआ। यहां जघन्य प्रदेशोदय दण्डक अधिकार प्राप्त है । वह जघन्य प्रदेशोदय मिथ्यात्वमें स्तोक है । सम्यग्मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। सम्यक्त्वमें असंख्यातगुणा है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरका असंख्यातगुणा है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धिचतुष्कमें अन्यतरका असंख्यातगुणा है । प्रचलाप्रचलाका असंख्यातगणा है । निद्रानिद्राका विशेष अधिक है । स्त्यानगृद्धिका विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणका विशेष अधिक है । प्रचलाका विशेष अधिक है । निद्राका विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है । जुगुप्साका अनन्तगुणा है। भयका विशेष अधिक है । हास्यका विशेष अधिक है । रतिका विशेष अधिक है । पुरुषवेदका विशेष अधिक है। संज्वलनचतुष्कमें अन्यतरका विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरणका असंख्यातगुणा है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है । नारकायुका असंख्यातगुणा है। शंका- यह योग्य नहीं है, क्योंकि, एकेन्द्रियके समय प्रबद्ध मात्र जो अवधिदर्शनावरणका जघन्य प्रदेशोदय है उसकी अपेक्षा अंगुलके असंख्यातवें भागसे अपवर्तित एक समयप्रबद्ध For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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