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________________ ३१० ) छक्खंडागमे संतकम्म विसे । आहारसरी णामाए असंखे० गुणो। णिरयगइणामाए असंखे० गुणो। तिरिक्खगइणामाए विसे० । अजसगित्तीए विसे० । णीचागोदस्स संखे० गुणो। वेउव्वियसरीरणामाए असंखे० गुणो । देवगइणामाए संखे० गुणो। दुगुंछाए असंखे० गुणो । भय० तत्तियो चेत्र । हस्स-सोग० विसेसा० । रदि-अरदि० विसे० । इत्थिवेदे० असंखे० गुणो । णवंसयवेदे ४ विसेसा० । पुरिसवेद० असंखे० गुणो। कोधसंजलणाए असंखे० गुणो। माणसंजलणाए असंखे० गुणो। माया० असंखे० गुणो। ओरालियसरीर० असंखे० गुणो । तेजासरीर० विसेसाहिओ । कम्मइयसरीर० विसे० । मगुसगई० असंखे० गुणो। दाणंतराइयस्स असंखे० गुणो। लाहंतराइयस्स विमेसा० भोगतरा० विसे० । परिभोगंतरा० विसे० । विरियंतराइयस्स विसेसा० । ओहिणाणावरण विसे० । मणपज्जवणाणावरण० विसे० । ओहिदसणावरण विसे० । सुदणाणावरण० विसे० । मदिणाणावरण विसे० । अचक्खुदंसणावरण विसे० । जसगित्तिणामाए विसेसा० । उच्चागोदस्स विसे० । लोभसंजलग० विसे० । सादासादाणं विसे० । ओघुक्कस्सपदेसुदयदंडओ समत्तो। णिरयगईए उक्कस्सओ पदेसउदओ सम्मामिच्छत्तस्स थोवो। पयलाए संखेज्ज है। आहारकशरीर नामकर्मका असंख्यातगणा है । नरकगति नामकर्मका असंख्यातगणा है। तिर्यग्गति नामकर्मका विशेष अधिक है । अयशकीर्तिका विशेष अधिक है । नीचगोत्रका संख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीर नामकमका असंख्यातगुणा है। देवगति नामकर्मका संख्यातगुणा है। जुगुप्साका असंख्यातगुणा है। भयका उतना मात्र ही है। हास्य व शोकका विशेष अधिक है। रति व अरतिका विशेष अधिक है । स्त्रीवेदका असंख्यातगुणा है। नपुंसकवेदका विशेष अधिक है । पुरुषवेदका असंख्यातगुणा है । संज्वलनक्रोधका असंख्यात है। संज्वलनमानका असंख्यातगणा है। संज्वलनमायाका असंख्यातगणा है। औदारिकशरीरका असंख्यातगुणा है। तैजसशरीरका विशेष अधिक है । कार्मणशरीरका विशेष अधिक है। मनुष्यगतिका असंख्यातगुणा है । दानान्तरायका असंख्यातगुणा है । लाभान्तरायका विशेष अधिक है । भोगान्त रायका विशेष अधिक है ।परिभोगान्तरायका विशेष अधिक है वीर्यान्तरायका विशेष अधिक है । अवधिज्ञानावरणका विशेष अधिक है । मनःपर्ययज्ञानावरणका विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरणका विशेष अधिक है । श्रुतज्ञानावरणका विशेष अधिक है । मतिज्ञानावरणका विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है । चक्षुदर्शनावरणका विशेष अधिक है । यशकीर्ति नामकर्मका विशेष अधिक है । उच्चगोत्रका विशेष अधिक है। संज्वलनलोभका विशेष अधिक है । साता व असाता वेदनीयका विशेष अधिक है । ओघ-उत्कृष्ट-प्रदेश-उदयदण्डक समाप्त हुआ। नरकगतिमें सम्यम्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेश उदय स्तोक है । प्रचलाका संख्यातगुणा है । ४ अ-काप्रन्यो: 'वेदो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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