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________________ उदयानुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा ( ३०९ जहण्णगो पदेसउदओ कस्स ? जो मदिआवरणस्स जहण्णपदेसवेदओ खुद्दाभवग्गहणं जीविऊण मदो साहारणकाइएसु उज्जोवणामाए वेदएसु उववण्णो आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदो तस्स पज्जत्तयदस्स पढमसमए साहारणसरीरणामाए जहण्णओ पदेसउदओ । तित्थयरणामाए जहण्णगो पदेसउदओ कस्स ? तप्पा ओग्गेण जहण्णएण जोगेण बंधिय सव्वक्कस्सियाहि गुणसेडिणिज्जराहि गालिय केवलणाणमुप्पाइय सजोगि पढमसम वट्टमाणस्स जहण्णगो पदेसउदओ । उच्चागोद-पंचतराइयाणं ओहिणाणावरणभंगो । एवं सामित्तं समत्तं । एत्तो एयजीवेण कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ कालो अंतरं सण्णियासो चेदि अणुयोगद्दाराणि सामित्तादो साहेदूण भाणियव्वाणि । तो अप्पा बहुअं । घुक्कस्सपदेसुदयदंडओ - मिच्छत्तस्स पदेसुदओ थोवो । सम्मामिच्छत्तस्स विसेसाहिओ । पयलापयलाए संखेज्जगुणो । णिद्दाणिद्दाए विसेसाहिओ । थी गिद्धी विसेसा० । अनंताणुबंधीसु अण्णदरस्त० विसे० । अपच्चक्खाण ० असंखे ० गुण | पच्चक्खाणावरणिज्ज० विसे० । पयलाए असंखे० गुणो । णिद्दाए विसे ० | सम्मत्ते असंखे० गुणो । केवलणाणावरणे संखे० गुणो । केवलदंसणावरणे विसे ० | देवा अस्स अनंतगुणो । णिरयाउ अस्स विसे० । मणुस्लाउअस्स संखे० गुणो । तिरिक्खाउअस्स साधारण नामकर्मका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? जो मतिज्ञानावरणके जघन्य प्रदेशका वेदक क्षुद्रभवग्रहण काल जीवित रहकर मृत्युको प्राप्त होता हुआ उद्योत नामकर्म के वेदक साधारणकायिकोंमें उत्पन्न होकर आनप्राणपर्याप्तिसे पर्याप्तक हुआ है उसके पर्याप्तक होनेके प्रथम समय में साधारणशरीर नामकर्मका जघन्य प्रदेश उदय होता है । तीर्थंकर नामकर्मका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? तत्प्रायोग्य जघन्य योगसे उसे बांधकर व सर्वोत्कृष्ट गुणश्रेणिनिर्जराओं द्वारा गलाकर केवलज्ञानको उत्पन्न कर सयोगकेवली के प्रथम समय में वर्तमान जीवके तीर्थंकर प्रकृतिका जघन्य प्रदेश उदय होता है । उच्चगोत्र और पांच अन्तराय कर्मोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानावरण के समान है । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । यहां एक जीवकी अपेक्षा काल, अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर और संनिकर्ष; इन अनुयोगद्वारोंका कथन स्वामित्वसे सिद्ध करके करना चाहिये । यहां अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की जाती है । उसमें ओघ उत्कृष्ट प्रदेश उदयका दण्डकमिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेश उदय स्तोक है । सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेश उदय विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलाका संख्यातगुणा है । निद्रानिद्राका विशेष अधिक है । स्त्यानगृद्धिका विशेष अधिक है । अनन्तानुबंधी कषायों में अन्यतरका विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क में अन्यतरका असंख्यातगुणा है । प्रत्याख्यानावरण में अन्यतरका विशेष अधिक है । प्रचलाका असंख्यातगुणा है । निद्राका विशेष अधिक है । सम्यक्त्वका असंख्यातगुणा है । केवलज्ञानावरणका संख्यातगुणा है । केवलदर्शनावरणका विशेष अधिक है । देवायुका अनन्तगुणा है । नरकाका विशेष अधिक है । मनुष्यायुका संख्यातगुणा हैं । तिर्यगायुका विशेष अधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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