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________________ २६४ ) छक्खंडागमे संतकम्म तित्थयर० अवत्तव्व० थोवा । भुजगार० असंखे० गुणा । अवढि० असंखे०० (?) गुणा । एवं भुजगारउदीरणा समत्ता । एत्तो पदणिक्खेवो । तत्थ सामित्तं- मदिआवरणीयस्स उक्कस्सिया वड्ढी कस्स? समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स । उक्कस्सिया हाणी कस्स? पढमसमयदेवस्स वीयरायपच्छायदस्स । उक्कस्समवट्टाणं कस्स ? बिदियसमयदेवस्स वीयरायपच्छायदस्स सुद-मणपज्जव-केवलणाणावरण-चक्खु-अचवखु-केवलदसणावरणाणं मदिआवरणभंगो । ओहिणाणावरण-ओहिदसणावरणाणं उक्कस्सिया वड्ढी कस्स? समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स जस्स ताधे चेव ओहिलंभो णट्ठो। हाणिअवट्ठाणाणं मदिआवरणभंगो। अधवा ओहिणाण-ओहिदसणावरणाणं वड्ढीए वि मदिणाणावरणभंगो होदि त्ति केसि पि आइरियाणमुवएसो। णिद्दा-पयलाणमुक्कस्सिया वड्ढी कस्स? जो अधापमत्तसंजदो तप्पाओग्गजहण्णविसोहीदो तप्पाओग्गउक्कस्सविसोहिं गदो तस्स उक्कस्सिया वड्ढी। उक्क० हाणी कस्स? जो उक्कस्सविसोहीदो सागार क्खएण उक्कस्ससंकिलेसं गदो तस्स उक्कस्सिया प्रकृतिके अवक्तव्य उदीरक स्तोक होते हैं। भुजाकार उदीरक असंख्यातगुणें होते हैं । अवस्थित उदीरक असंख्यातगुणे होते हैं। इस प्रकार भुजाकार उदीरणा समाप्त हुई। यहां पदनिक्षेपकी प्ररूपणा करते हैं। उसमें स्वामित्व इस प्रकार है- मतिज्ञानावरणकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जिसके चरम समववर्ती छद्मस्थ होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष है उसके उसकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है? वीतराग ( उपशान्तमोह ) से पीछे आये हुए प्रथम समयवर्ती देवके उसको उत्कृष्ट हानि होती है। उसका उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? वीतरागसे पीछे आये हुए द्वितीय समयवर्ती देवके उसका उत्कृष्ट अवस्थान होता है । श्रुतज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और केवलदर्शनावरणके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है । अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणको उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जिसके अन्तिम समयवर्ती छद्मस्य होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष रही है तथा उसी समय ही जिसकी अवधिलब्धि नष्ट हुई है उसके उन दोनों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। इनकी उत्कृष्ट हानि एवं अवस्थानकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। अथवा, अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उत्कृष्ट वुद्धिका कथन भी मतिज्ञानावरणके ही समान है, ऐसा कितने ही आचार्योंका उपदेश है। निद्रा और प्रचला दर्शनावरणकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती हैं ? जो अधःप्रवृत्तसंयत तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिसे तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त हुआ है उसके निद्रा सौर प्रचलाकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो उत्कृष्ट विशुद्धिसे साकार उपयोगके क्षयपूर्वक उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ है उसके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है। जब वह ४ आप्रतौ । संखेज ' इति पाठः। अ-काप्रत्योः 'सागर-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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