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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( २४५ णिद्दाभंगो । णवरि पमत्तसंजदो सामी । सादासादाणं जहण्णवड्ढि-हाणी-अवट्ठाणाणि कस्स? अण्णदरस्स। मिच्छत्तस्स जहण्णिया हाणी कस्स? चरिमसमयमिच्छाइट्ठिस्स से काले संजमं पडिवज्जंतस्स । वड्ढि-अवट्ठाणाणि कस्स? अधापवत्तमिच्छाइहिस्स* तप्पाओग्गविसुद्धस्स उदयादो अणंतभाएण वड्ढियस्स जह० वड्ढी । तस्सेव से काले जहण्णमवट्ठाणं । अणंताणुबंधिचउक्कस्स मिच्छत्तभंगो । सम्मत्तस्स जहणिया हाणी कस्स? समयाहियावलियचरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्स । वड्ढि-अवढाणाणि कस्स ? अधापमत्तसम्माइट्ठिस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्स उदयादो अणंतभागेण वड्ढियस्स तस्स जहणिया वड्ढी अवट्ठाणं च । सम्मामिच्छत्तस्स जहणिया वड्ढी कस्स ? जो अधापमत्तसम्मामिच्छाइट्ठी तप्पाओग्गविसुद्धो अणंतभाएण उदयादो वढिदो तस्स जहणिया वड्ढी । तस्सेव से काले जहण्णमवट्ठाणं । सम्मामिच्छत्तस्स जह० हाणी कस्स? से काले सम्मत्तं पविडज्जंतस्स । अपच्चक्खाणकसायाणं जहणिया हाणी कस्स? सम्माइद्विस्स असंजदस्स से और स्त्यानगृद्धिकी प्ररूपणा निद्रा दर्शनावरणके समान है । विशेष इतना है कि उनका स्वामी प्रमत्तसंयत होता है। साता व असाता वेदनीयकी जघन्य वृद्धि, हानि व अवस्थान किसके होते है ? वे किसीके भी होते हैं। मिथ्यात्वकी जघन्य हानि किसके होती है ? जो अनन्तर कालमें संयमको प्राप्त होनेवाला है ऐसे अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके मिथ्यात्वकी जघन्य हानि होती है। उसकी जघन्य वृद्धि और अवस्थान किसके होते हैं ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध व उदयकी अपेक्षा अनन्तभागवृद्धि द्वारा वृद्धिको प्राप्त ऐसे अधःप्रवृत्त मिथ्यादृष्टिके उसकी जघन्य वृद्धि होती है। उसी के अनन्तर कालमें उसका जघन्य अवस्थान होता है। अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी प्ररूपणा मिथ्यात्वके समान है। सम्यक्त्वकी जघन्य हानि किसके होती है ? जिसके दर्शनमोहनीयके अक्षीण रहने में एक समय अधिक आवली मात्र काल शेष रहा है उसके सम्यक्त्व प्रकृ जघन्य हानि होती है। उसकी जघन्य वृद्धि व अवस्थान किसके होते हैं ? जो अधःप्रवृत्त सम्यग्दृष्टि तत्प्रायोग्य विशुद्धिसे संयुक्त है व उदयकी अपेक्षा अनन्तवें भागसे वृद्धिको प्राप्त हुआ है उसके उसकी जघन्य वृद्धि व अवस्थान होता है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो अधःप्रवृत्त सम्यग्मिथ्यादृष्टि तत्प्रायोग्य विशुद्धिसे संयुक्त व उदयकी अपेक्षा अनन्तवें भागसे वृद्धिंगत है उसके उसकी जघन्य वृद्धि होती है। उसीके अनन्तर कालमें उसका जघन्य अवस्थान होता है । सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य हानि किसके होती है ? अनन्तर कालमें जो सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाला है उसके उसकी जघन्य हानि होती है। अप्रत्याख्यानावरण कषायोंकी जघन्य हानि किसके होती है ? जो अविरत सम्यग्दृष्टि - * ताप्रती ' अधापम व ) तमिच्छाइदुिस्स' इति पाठः । ४ ताप्रती 'सम्मत्ते' इति पाठः । * अतोऽग्रे अ-काप्रत्योः पच्चक्खाणावरणकसायाणं जहणियाहाणी कस्स' इत्येतावत्पर्यन्त: पाठस्त्रटितोऽस्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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