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उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा
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हाणी कस्स ? जो तेत्तीससागरोवमद्विदीओ उक्कस्ससंकिलिट्ठो सागारक्खएण तप्पाओग्गजहण्णे संकिलेसे पदिदो तस्स उक्कस्सिया हाणी। तस्सेव से काले उक्कस्समवट्ठाणं । मणुस-तिरिक्खाउआणमुक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? जो तिण्णिपलिदोवमाउद्विदीओ तप्पाओग्गजहण्णविसोहीदो तप्पाओग्गउक्कस्सविसोहि गदो तस्स उक्कस्सिया वड्ढी । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? जो तप्पाओग्गउक्कस्सविसोहीदो सागारक्खएण तप्पाओग्गजहण्णविसोहि गदो तस्स उक्कस्सिया हाणी । तस्सेव से काले उक्कस्समवट्ठाणं । देवाउअस्स उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? जो तेत्तीससागरोवमाउद्विदीओ तप्पाओग्गजहण्णविसोहीदो तप्पाओग्गउक्कस्सविसोहिं गदो तस्स उक्कस्सिया वड्ढी । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? तस्सेव उक्कस्सआउओदयादो जो सागारक्खएण पडिभग्गो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्कस्समवट्ठाणं ।
णिरयगईए णिरयाउभंगो । मणुसगईए मणुसाउभंगो। देवगईए देवाउभंगो। तिरिक्खगईए इत्थिवेदभंगो । ओरालियसरीर-ओरालियअंगोवंग-बंधण-संघादाणंमणुसगइभंगो। आहारसरीर-आहारसरीरअंगोवंग-बंधण-संघादाणं उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? तप्पाओग्गजहण्णविसोहीदो जो उक्कस्सविसोहि गदो तस्स उक्क० वड्ढी ।
उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाला जो जीव उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर साकार उपयोगके क्षयसे तत्प्रायोग्य जघन्य संक्लेशमें आ पडा है उसके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है। उसीके अनन्तर कालमें उसका उत्कृष्ट अवस्थान होता है। मनुष्यायु और तिर्यगायुकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? तीन पल्योपम प्रमाण आयुवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिसे तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त हुआ है उसके उक्त दो आयु कर्मोकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिसे साकार उपयोगका क्षय होनेसे तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिको प्राप्त हुआ है उसके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है। उसीके अनन्तर कालमें उनका उत्कृष्ट अवस्थान होता है। देवायुकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिसे तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त हुआ है उसके देवायुकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो साकार उपयोगके क्षयपूर्वक आयुके उत्कृष्ट उदयसे प्रतिभग्न हुआ है उसके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है । अनन्तर कालमें उसके ही उसका उत्कृष्ट अवस्थान होता है ।
__ नरकगतिकी वृद्धि-हानिकी प्ररूपणा नारकायुके समान है। मनुष्यगतिकी उक्त वृद्धि-हानिकी प्ररूपणा मनुष्यायुके समान, देवगतिकी देवायुके समान, और तिर्यंचगतिकी स्त्रीवेदके समान है। औदारिकशरीर, औदारिकअंगोपांग तथा औदारिक बन्धन व संघातकी प्ररूपणा मनुष्यगतिके समान है। आहारकशरीर, आहारकशरीरांगोपांग एवं आहारक बन्धन व संघातकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिसे उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त हुआ है उसके
अ-काप्रत्योः 'पलिदोवमस्स तस्स', ताप्रती 'पलिदोवमस्स (पदिदो तस्स ' इति पाठः। अपतो 'पडिभागो' इति पाठः I For Private & Personal Use Only
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