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छक्खंडागमे संतकम्म
जाणि कम्माणि उदएण परियत्तमाणयाणि तेसि भुजगार-अप्पदरउदीरणंतरं जहा पयडिउदीरणाए अंतरं परविदं तहा परूवेयव्वं । एवमंतरं समत्तं ।
णाणाजीवेहि भंगविचओ। तं जहा- पंचणाणावरणीय-चत्तारिदसणावरणीय पंचतराइयाणं जाओ णामपयडीओ धुवमुदीरिज्जंति तासि चर्स भुजगार-अप्पदर अवट्टिदउदीरया णियमा अत्थि। मिच्छत्त-तिरिक्खगइ-एइंदियजादि-णqसयवेद-थावरदूभग-अणादेज्ज-णीचागोदाणं भुजगार-अप्पदर-अवट्टिदउदीरया णियमा अस्थि । अवत्तव्वउदीरया भजियव्वा- सिया एदे च अवत्तव्वउदीरओ च, सिया एदे च अवत्तव्वउदीरया च, धुवसहिया एत्थ तिणि भंगा । सम्मामिच्छत्त-आहारसरीराणं आहारसरीरपाओग्गअंगोवंग-बंधण-संघादाणं तिण्णमाणुपुव्वीणं च असिदीभंगा, धुवभंगाभावादो। ८०।
सम्मत्त-इत्थि-पुरिसवेद-तिण्णिआउ-तिण्णिगइ-जादिचउक्क-ओरालियसरीरअंगोवंग-वेउब्वियसरीर-तदंगोवंग-बंधण-संघाद-पंचसंठाण-छसंघडण-पसत्यापसत्थविहायगइ-तस-सुभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-उच्चागोदाणं भुजगार-अप्पदरउदीरया णियमा अत्थि । अवट्ठिद-अवत्तव्वउदीरया भजियव्वा । तेणेत्थ णव भंगा होति ९ । पंचदंसणावरणीय-सादासाद-सोलसकसाय-हस्स-रदि-अरदि-सोग--भय-दुगुंछा-तिरिक्खाउ--ओरालियसरीर--तप्पाओग्गबंधण-संघाद--हुंडसंठाण--तिरिक्खाणुपुवी-- भुजाकार व अल्पतर अनुभागउदीरणाके अन्तरकी प्ररूपणा प्रकृतिउदीरणाके अन्तरके समान करना चाहिये । इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ।
___ नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयका कथन करते हैं । यथा- पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय और पांच अन्तरायके तथा जिन नामप्रकृतियोंकी ध्रुव उदीरणा होती है उनके भी भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरक नियमसे होते हैं। मिथ्यात्व, तिर्यग्गति, एकेन्द्रिय जाति, नपुंसकवेद, स्थावर, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरक नियमसे होते हैं। अवक्तव्य उदीरक भजनीय हैं-- कदाचित् उपर्युक्त ये तीन उदीरक बहुत व अवक्तव्य उदीरक एक होता है, कदाचित् ये तीन उदीरक बहुत और अवक्तव्य उदीरक भी बहुत होते हैं, इनमें ध्रुवभंगके मिला देनेसे यहां तीन भंग होते हैं। सम्यग्मिथ्यात्व, आहारकशरीरप्रायोग्य आंगोपाग, बन्धन व संघात तथा तीन आनुपूर्वी ; इनके अस्सी (८०) भंग होते हैं, कारण ध्रुव भंगका अभाव है।
सम्यक्त्व, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, तीन आयुकर्म, तीन गतियां, चार जातियां, औदारिकशरीरांगोपांग, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, वैक्रियिक बन्धन व संघात, पांच संस्थान, छह संहनन, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, सुभग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय और उच्चगोत्र ; इनके भुजाकार व अल्पतर उदीरक नियमसे होते हैं । अवस्थित व अवक्तव्य उदीरक भजनीय हैं। इस कारण यहां ( ९) भंग होते हैं । पांच दर्शनावरण, साता व असातावेदनीय, सोलह कषाय, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यगायु, औदारिकशरीर, तत्प्रायोग्य
४ ताप्रतौ 'च' इत्येतत्पदं नास्ति।
* ताप्रतौ — अंगोवंगाणं' इति पाठः । For Private & Personal Use Only
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