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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( २२९ मणपज्जव० अ० गुणा। सुद० अ० गुणा । मदिणाण० अ० गुणा । पच्चक्खाणचउक्कम्मि अण्णदर० अ० गुणा । केवलगाण० केवलदंस० अ० गुणा । पंयला० अ० गुणा। णिद्दा० अ० गुणा । पयलापयला० अ० गुणा। णिहाणिद्दा० अ० गुणा । थीणगिद्धि अ० गुणा। अपच्चक्खाणचउक्कम्मि अण्णदर० अ० गुणा। सम्मामिच्छत्त० अ० गुणा। अणंताणुबंधिचउक्कम्मि अण्णदर० अणंतगुणा। मिच्छत्त०अ० गुणा। ओरालिय० अ० गुणा। वेउव्वि० अणंतगुणा। तिरिक्खाउ० अ० गुणा। तेज० अ० गुणा । कम्मइय० अ० गुणा । तिरिक्खगइ० अ० गुणा । णीचागोद० अजसगित्ति० अणंतगुणा। असाद० अ० गुणा । जसगित्ति० अ० गुणा । साद० अ० गुणा। उच्चागोद० अणंतगुणा । मणुस्सेसु ओघं । णवरि तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-णिरआउ-णिरयगइ-देवाउदेवगईणमुदीरणा णत्थि । देवगदीए सव्वमंदाणुभागं सम्मत्तं । चक्खु० अ० गुणा। सुदावरण० अ० गुणा। मदिआवरण० अ० गुणा। अचक्खु० अ० गुणा। ओहिणाण० ओहिदंस० उदीरणा अनन्तगुणी है। श्रुतज्ञानावरणकी उदीरणा अनंतगुणी है । मतिज्ञानावरणकी उदीरणा अनंतगुणी है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी है । केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी है । प्रचलाकी उदीरणा अनन्तगुणी है। निद्राकी उदीरणा अनन्तगुणी है। प्रचलाप्रचलाकी उदीरणा अनन्तगुणी है। निद्रानिद्राकी उदीरणा अनंतगुणी है । स्त्यानगृद्धिकी उदीरणा अनंतगुणी है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरणा अनंतगुणी है। अनन्तानबन्धिचतष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी है। मिथ्यात्वकी उदीरणा अनन्तगुणी है। औदारिकशरीरकी उदीरणा अनंतगुणी है। वैक्रियिकशरीरकी उदीरणा अनंतगुणी है। तिर्यगायुकी उदीरणा अनन्तगुणी है। तैजसशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी है। कार्मणशरीरकी उदीरणा अनन्तगणी है। तिर्यग्गतिकी उदीरणा अनन्तगुणी है। नीचगोत्र व अयशकीर्तिकी उदीरणा अनंतगणी है। असातावेदनीयकी उदीरणा अनंतगुणी है। यशकीर्तिकी उदीरणा अनंतगुणी है। सातावेदनीयकी उदीरणा अनन्तगुणी है । उच्चगोत्रकी उदीरणा अनन्तगुणी है। मनष्योंमें जघन्य अनुभागउदीरणाके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेष इतना है कि तिर्यगायु, तिर्यग्गति, नारकायु, नरकगति, देवायु और देवगतिकी उदीरणा उनमें सम्भव नहीं है। देवगतिमें सम्यक्त्व प्रकृति सबसे मंद अनुभागवाली है। उससे चक्षुदर्शनावरणकी जघन्य अनुभागउदीरणा अनन्तगुणी है । श्रुतज्ञानावरणकी उदीरणा अनंतगुणी है। मतिज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी है। अचक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी है। हास्यकी उदीरणा अनंतगुणी है। ताप्रती 'उच्चागोद० अण्ण अणं तगुणा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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