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________________ २२६) छक्खंडागमे संतकम्म वीरियंतराइय० अ० गु० हीणा । एवं विलिदिएसु वि । णवरि पसत्थकम्मंसाणमुवरि कायव्वं । एवमुक्कस्सप्पाबहुअं समत्तं । सव्वमंदाणुभागं लोहसंजलणं । मायासंजलणं अणंतगुणा । माणसंज० अणंतगुणा । कोधसंज० अणंतगुणा । वीरियंतराइय० अणंतगुणा। सम्मत्त० अणंतगुणा । चक्खुदंस० सुदणा० अणंतगुणा । मदि० अणंतगुणा। अचक्खु० अणंतगुणा । ओहिणाण० ओहिदंस० अणंतगुणा । परिभोगंतराइय० अणंतगुणा । भोगंतराइय० अणंतगुणा । लाहंतराइय० अणंतगुणा । दाणंतराइय० अणंतगुणा । पुरिसवे० अणंतगुणा । इत्थि० अणंतगुणा । णवूस अ० गुणा मणपज्जव० अ० गुणा । हस्स० अ०गुणा । रदि० अ० गुणा । दुगुंछा० अ० गुणा । भय० अ० गुणा । सोग० अ० गुणा। अरदि० अ० गुणा। केवलणाण केवलदसण० अ० गुणा। पयला० अ० गुणा। णिद्दा० अ० गुणा। पयलापयला० अणंतगुणा। णिहाणिद्दा अ० गुणा । थीणगिद्धि अ० गुणा । पच्चक्खाणचउक्कम्मि अण्णदर० अ० गुणा । अपच्च० चउक्क० अण्ण० अ० गुणा । सम्मामिच्छत्त० अ० गुणा । अणंताणुबंधिचउक्कम्मि अण्णदर० अणंतगुणा। मिच्छत्त० प्रकारसे विकलेन्द्रियोंमें भी प्रकृत अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करना चाहिये । विशेष इतना है कि प्रकृत कर्माशोंका अल्पबहुत्व ऊपर करना चाहिये । इस प्रकार उत्कृष्ट अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। संज्वलनलोभ सबसे मंद अनुभागवाली प्रकृति है। उससे संज्वलनमायाके जघन्य अनुभागकी उदीरणा अनन्तगुणी है। संज्वलनमानकी उदीरणा अनन्तगुणी है। संज्वलनक्रोधकी उदीरणा अनंतगुणी है। वीर्यान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी है। सम्यक्त्वकी उदीरणा अनंतगुणी है। चक्षुदर्शनावरण और श्रुतज्ञानावरणकी उदीरणा अनंतगुणी है । मतिज्ञानावरणकी उदीरणा अनंतगुणी है । अचक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनाणकी उदीरणा अनन्तगुणी है। परिभोगान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी है। भोगान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी है। लाभान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी है। दानान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी है। पुरुषवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी है । स्त्रीवेदकी उदीरणा अनंतगुणी है। नपुंसकवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी है। मनःपर्ययज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी है। हास्यकी उदीरणा अनन्तगुणी है। रतिकी उदीरणा अनंतगुणी है। जुगुप्साकी उदीरणा अनंतगुणी है। भयकी उदीरणा अनन्तगुणी है। शोककी उदीरणा अनन्तगुणी है । अरतिकी उदीरणा अनन्तगुणी है। केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी है । प्रचलाकी उदीरणा अनन्तगुणी है। निद्राकी उदीरणा अनन्तगुणी है । प्रचलाप्रचलाकी उदीरणा अनन्तगुणी है। निद्रानिद्राकी उदीरणा अनंतगुणी है। स्त्यानगृद्धिकी उदीरणा अनंतगुणी है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरणा अनंतगुणी है । अनन्तानुबन्धिचष्कमें अन्यतरकी उदीरणा . अ-काप्रत्यो: 'रदि० ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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