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________________ २२२ ) छक्खंडागमे संतकम्म अ० गु० हीणा । हस्स० अ० गु० हीणा । मणुसगइ० अ० गु० हीणा० । ओरालिय० अणंतगुणहीणा । मणुसाउ० अणंतगुणहीणा । असाद० अ० गु० होणा० । णवंसयवे० अ० गु० हीणा । इत्थि० अ० गु० हीणा । पुरिस० अ० गु० होणा० । अरदि० अ० गु० हीणा । सोग० अ० गु० हीणा । भय० अ० गु० होणा। दुगुंछा० अ० गु० हीणा । णीचागोद० अ० गु० हीणा । अजसकित्ति० अ० गु० हीणा । सम्मामिच्छत्त० अ० गु० होणा। दाणंतराइय० अ० गु० हीणा। लाहंतराइअ० अ० गु० हीणा । भोगंतराइय० अ० गु० हीणा । परिभोगंतराइय० अ गु० हीणा । अचक्खु० अ० गु० हीणा । चक्खु० अ० गु० हीणा । वोरियंतराइय० अ० गु० हीणा। सम्मत्तअणंतगुणहीणा। देवगदीए सव्वतिव्वाणुभागं सादावेदणीयं । उच्चागोद० जसगित्ति० अ० गु० होणा। मिच्छत्त० अ० गु० होणा। केवलाणण० अ० गु० हीणा । केवलदसण० अ० गु० हीणा। अणंताणुबंधिचउक्कम्मि अण्णदर० अ० गुणहीणा। संजलणचउक्कम्मि अण्णदर० अ० गु० हीणा । पच्चक्खाणचउक्क० अण्णद० अ० गु० हीणा। अपच्च० चउक्क० अण्णद० अ० गु० होणा*। मदिआवरण० अ० गु० हीणा । सुद० अ० गु० हीणा । हीन है। मनुष्यगतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । औदारिकशरीरकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है । मनुष्यायुकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । असातावेदनीयकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। नपुंसकवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। स्त्रीवेदकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। पुरुषवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अरतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। शोककी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । भयकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। जुगुप्साकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। नीचगोत्रकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अयशकीर्तिकी उदोरणा अनन्तगुणी हीन सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। दानान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। है। लाभान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। भोगान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। परिभोगान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अचक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। चक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। वीर्यान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। सम्यक्त्वकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। देवगतिमें सातावेदनीय सबसे तीव्र अनुभागवाली प्रकृति है। उससे उच्चगोत्र व यशकीर्तिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । मिथ्यात्वकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। केवलज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। केवलदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अनन्तानुबन्धिचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। संज्वलनचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मतिज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । श्रुतज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मनःपर्यय ताप्रतौ 'अणं गुणा०' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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