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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( २०७ भागुदीरणकालो जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे० भागो। अजहण्ण० जह० अंतोमु० उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। सादासाद-तिरिक्खाउआणं जहण्णाजहण्णाणुभागउदीरणकालो सव्वद्धा । णिरय-देव-मणुस्साउ-णिरय-देव-मणुस्सगदि-चउजादि-वेउब्विय-तेजा-कम्मइयसरीरओरालिय-वेउव्वियअंगोवंग-वेउविय-तेजा-कम्मइयसरीरबंधण-संघाद-पसत्थवण्ण-गंधरस-फास-णिरय-देव-मणुस्साणुपुव्वी-अगुरुअलहुअ-आदाव-पसत्थापसत्थविहायगइ-तसथिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-णिमिणुच्चागोदाणं जहण्णाणुभागउदीरणकालो जह० एगसमओ, उवक० आवलि० असंखे० भागो। अजहण्णाणुभागुदोरणाए सव्वद्धा। णवरि तिण्णमाणुपुव्वीणं जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असं० भागो। तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वी-एइंदियजादि-ओरालियसरीर-तब्बंधणसंघाद-हुंडसंठाण-उवघाद-परघाद-उज्जोव-उस्सास-थावर-बादर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत्तपत्तेय-साहारणसरीर-जसकित्ति--अजसकित्ति-दुभग-अणादेज्ज-णीचागोद-तित्थयराणं जहण्ण-अजहण्णअणुभागउदीरणकालो सव्वद्धा। णवरि तित्थयरस्स अजहण्णाणुभागउदीरणकालो जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं। आहारसरीर-आहारसरीरंगोवंग-तब्बंधण-संघा. दाणं जहण्णाणुभागउदीरणकालो जह० एगसमओ, उक्क०संखेज्जा समया। अज० जहण्णुग्मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र है। अजघन्य अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे अंतर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। साता व असाता वेदनीय और तिर्यंचआयुकी जघन्य व अजघन्य अनुभागउदीरणाका काल सर्वकाल है। नारकायु, देवायु, मनुष्यायु, नरकगति, देवगति, मनुष्यगति, चार जातियां, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीर, औदारिक व वैक्रियिक अंगोपांग, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीरके बन्धन और संघात, प्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस व स्पर्श, नरकानुपूर्वी, देवानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, आतप, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, निर्माण और ऊंचगोत्र; इनकी जघन्य अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र है। इनकी अजघन्य अनुभागउदीरणाका काल सर्वकाल है। विशेष इतना है कि तीन आनुपूर्वियोंकी अजघन्य अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र है। तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, औदारिकबन्धन, औदारिकसंघात, हुण्डकसंस्थान, उपघात, परघात, उद्योत, उच्छ्वास, स्थावर, बादर, सूक्ष्म पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, यशकीर्ति, अयशकोति, दुर्भग, अनादेय, नीचगोत्र और तीर्थंकर; इनकी जघन्य व अजघन्य उदीरणाका काल सर्वकाल है। विशेष इतना है कि तीर्थंकर प्रकृतिकी अजघन्य अनुभागउदीरणाका काल जघन्य व उत्कर्षसे अंतर्मुहुर्त मात्र है । आहारकशरीर, आहारकशरीरांगोपांग, तथा उसके बन्धन व संघात, इनकी जघन्य अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय मात्र है । इनकी अजघन्य अनुभागउदीरणाका काल जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। पांच संस्थानों और छह For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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