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________________ १८४ ) छक्खंडागमे संतकम्म संजदासंजदस्स सव्वविसुद्धस्स से काले संजमं पडिवज्जिहिदि त्ति । ___ कोधसंजलणाए जहणिया उदीरणा कस्स ? कोधोदएण खवगसेडिमुवट्टियस्स चरिमसमयकोधवेदयस्स । माणसंजलणाए जहणिया उदीरणा कस्स ? कोधोदएण माणोदएण वा खवगसेढिमारूढस्स चरिमसमयमाणवेदगस्स। मायासंजलणाए जहणिया उदीरणा कस्स ? चरिमसमयमायवेदस्स खवगस्स। लोभसंजलणाए जहणिया उदीरणा कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयसकसायस्स खवयस्स । णवंसयवेदस्स जहणिया उदीरणा कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयणqसयवेदयखवयस्स। पुरिसवेदस्स जहणिया उदीरणा कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयपुरिसवेदखवयस्स । इत्थिवेदस्स जहणिया उदीरणा कस्स ? समयाहियावलियइत्थिवेदस्स खवयस्स । हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं जहणिया उदीरणा कस्स ? चररिमसमयअपुव्वकरणखवगस्स सव्वविसुद्धस्स। णिरयाउअस्स जहणिया उदीरणा कस्स ? दसवस्ससहस्सियाए दिदीए उववण्णस्स गैरइयस्स पढमे वा चरिमे वा अण्णम्हि वा कम्हि वि एगसमए वट्टमाणस्स। करेगा, इस प्रकारसे स्थित सर्वविशुद्ध संयतासंयतके उसकी जघन्य अनुभागउदीरणा होती है। संज्वलनक्रोधकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह क्रोधोदयके साथ क्षपक श्रेणिपर आरूढ हुए अन्तिम समयवर्ती क्रोधवेदक जीवके होती है। संज्वलनमानकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह क्रोधके उदयके साथ अथवा मानके उदयके साथ क्षपक श्रेणिपर आरूढ हुए अन्तिम समयवर्ती मानवेदकके होती है। संज्वलनमायाकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह अन्तिम समयवर्ती मायावेदक क्षपकके होती है। संज्वलन लोभकी जघन्य उदीरणा किसके होती है। जिसकी सकषाय अवस्थाके अन्तिम समयमें एक समय अधिक आवली मात्र शेष है ऐसे क्षपक जीवके संज्वलनलोभकी जघन्य उदीरणा होती है। नपुंसकवेदकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? जिसके अन्तिम समयवर्ती नपुंसकवेदक होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष रही है ऐसे क्षपकके नपुंसकवेदकी जघन्य उदीरणा होती है । पुरुषवेदकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? जिसके अन्तिम समयवर्ती पुरुषवेदी होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष रही है ऐसे क्षपक जीवके उसकी जघन्य उदीरणा होती है । स्त्रीवेदकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? स्त्रीवेदवेदक क्षपकके उसके वेदनमें एक समय अधिक आवली मात्र कालके शेष रहनेपर स्त्रीवेदकी जघन्य उदीरणा होती है। हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती अपूर्वकरण क्षपकके होती है। नारकायुकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह दस हजार वर्षकी आयु स्थितिके साथ उत्पन्न हुए नारकीके प्रथम, अन्तिम अथवा अन्य किसी भी एक समयमें वर्तमान रहनेपर होती ४ काप्रतौ 'वेयणीयखवयस्स', ताप्रती 'वेदणीयखवयस्त ' इति पाठः । * काप्रती 'देवस्स सहस्सियाए ', ताप्रतौ 'देवस्स (दसवस्स) सहस्सियाए ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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