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छवखंडागमे संतकम्मं
गुणपडवणे परिणामपच्चइया, अगुणपडिवण्णेसु भवपच्चइया । को पुण गुणो ? संजमो संजमासंजमो वा । एवं पच्चयपरूवणा गदा ।
विवागपरूवणागदाए जहा णिबंधो पुव्वं परूविदो तहा एत्थ विवागो वि परूवेयव्वो, भेदाभावादो ।
ठाणपरूवणदाए आभिणिबोहियणाणावरणीयस्स उक्कस्सिया उदीरणा नियमा चउट्ठाणिया । अणुक्कस्सा चउट्ठाणिया तिट्ठाणिया बिट्ठानिया एयट्ठाणिया वा । सुदणाणावरण - ओहिणाणावरण ओहिदंसणावरण-चदुसंजलण - णवुंसयवेदाणमाभिणिवोहियणाणावरणभंगो । मणपज्जवणाणावरण- केवलदंसणावरण- णिद्दाणिद्दा- पयलापयलाथी गिद्ध - णिद्दा - पयला-सादासादवेदणीय-मिच्छत्त- बारसकसाय छष्णोकसाय- णिरय-देवाउ- णिरय-- देवगइ - पंचिदियजादि-चदुसरीर - वे उब्विय - आहार अंगोवंग - वेड व्वियआहार - तेजा - कम्मइयपाओग्गबंधण-संघाद - समचउरस- हुंडठाण - वण्ण-गंध-रस-सीदुसुण- गिद्ध - ल्हुक्ख-मअ-लहुअ - अगुरुअलहुअ - उवघाद - परघाद -- उज्जोवुस्सास-पसत्थापसत्थविहायगइ-तस - बादर - पज्जत्त - पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुभासुभ-सुभग-- सुस्सरआदेज्ज - जसकित्ति दुभग- दुस्सर - अणादेज्ज- अजसकित्ति - णिमिणणीचुच्चागोदाणमुक्कस्सिया उदीरणा चउट्ठाणिया । अणुक्कस्सा चउट्ठाणिया तिट्ठाणिया दुट्टाणिया वा । प्रत्ययिक और अगुणप्रतिपन्न जीवोंमें भवप्रत्ययिक होती है ।
शंका- गुणसे क्या अभिप्राय है ?
समाधान - गुणसे अभिप्राय संयम और संयमासंयमका है ।
इस प्रकार प्रत्ययप्ररूपणा समाप्त हुई ।
विपाकप्ररूपणाकी विवक्षा होनेपर जैसे पहिले निबन्धकी प्ररूपणा की गई है वैसे यहां विपाककी भी प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि, उनमें कोई विशेषता नहीं है ।
स्थानप्ररूपणामें आभिनिबोधिकज्ञानावरणकी उत्कृष्ट उदीरणा नियमसे चतुः स्थानिक तथा अनुत्कृष्ट उदीरणा चतु:स्थानिक, त्रिस्थानिक, द्विस्थानिक और एकस्थानिक होती है । श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, अवधिदर्शनावरण, चार संज्वलन और नपुसंक वेदकी प्ररूपणा आभिनिबोधिकज्ञानावरणके समान है । मन:पर्ययज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा, प्रचला, साता व असाता वेदनीय, मिथ्यात्व, बारह कषाय, छह नोकषाय, नारकायु, देवायु, नरकगति, देवगति, पंचेंद्रियजाति, चार शरीर, वैयिक व आहारक अंगोपांग, वैक्रियिक, आहारक, तेजस व कार्मण शरीरोंके योग्य बंधन व संघात; समचतुरस्रसंस्थान, हुण्डकसंस्थान, वर्ण, गन्ध, रस, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, मृदु, लघु, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उद्योत, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, अयशकीर्ति, निर्माण तथा नीच व ऊच गोत्र, इनकी उत्कृष्ट उदीरणा चतु. स्थानिक तथा अनुत्कृष्ट उदीरणा चतुःस्थानिक, त्रिस्थानिक और द्विस्थानिक
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तानी ' गुणगारो' इति पाठ ।
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