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________________ १६६ ) वि अत्थि । ते एत्थ ण विवक्खिया । मिच्छत्तस्स सव्वत्थोवा अवत्तव्वउदीरया । संखेज्जगुणहाणिउदीरया असंखेज्जगुणा । संखेज्जभागहाणिउदीरया असंखेज्जगुणा । संखेज्जगुणवड्ढि उदीरया असंखेज्जगुणा । संखेज्जभागवड्ढि उदीरया संखेज्जगुणा । असंखेज्जभागवड्ढि उदीरया अणंतगुणा । अवद्विदउदीरया असंखेज्जगुणा । असंखेज्जभागहाणिउदीरया संखेज्जगुणा । सम्मामिच्छत्तस्स सव्वत्थोवा अवत्तव्वउदीरया । असंखेज्जभागहाणिउदीरया असंखे-ज्जगुणा । सम्मत्तस्स सव्वत्थोवा असंखेज्जभागहाणिउदीरया । अवट्टिदउदीरया असंखेज्जगुणा । असंखेज्जभागवड्ढिउदीरया असंखेज्जगुणा । संखेज्जगुणवड्ढिउदीरया असंखेज्जगुणा । संखेज्जभागवड्ढिउदीरया संखेज्जगुणा । एदे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागछेदणएहि ओवट्टिदसम्मत्तपवेसणरासिपमाणं । संखेज्जगुणहाणिउदीरया असंखेज्जगुणा । कुदो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागच्छेदणएहि ओवट्टपसम्मत्तपवेसणरासिपमाणत्तादो। अवत्तव्वउदीरया असंखेज्जगुणा । कुदो ? सम्मत्तपवेसणरासिगहणादो । संखेज्जभागहाणिउदीरया असंखेज्जगुणा । अवत्तव्वउदीरया णाम एगसमयपवेसया, संखेज्जभागहाणिउदीरया पुण सव्वो पविट्ठरासी अंतोमुहुत्तस्संतो संखेज्जवारं संखेज्जभागवड्ढिखंडयघादओ, तेण संखेज्जभागहाणिउदीरया असंखेज्ज - गुणा । असंखेज्जभागहाणिउदीरया असंखेज्जगुणा । छक्खंडागमे संतकम्मं उदीरक भी होते हैं । परन्तु उनकी यहां विवक्षा नहीं की गयी है । मिथ्यात्वके अवक्तव्य उदीरक सबसे स्तोक हैं । संख्यातगुणहानिउदीरक असंख्यातगुणे हैं । संख्यात भागहानिउदीरक असंख्यातगुणे हैं । संख्यातगुणवृद्धिउदीरक असंख्यातगुणे हैं । संख्यात भागवृद्धिउदोरक संख्यातगुणे हैं । असंख्यात भाहानिउदीरक अनन्तगुणे हैं । अवस्थितउदीरक असंख्यातगुणे हैं । असंख्यात भागवृद्धिउदीरक अनन्तगुणे हैं । सम्यग्मिख्यात्वके अवक्तव्य उदीरक सबसे स्तोक हैं । असंख्यात भागहानि उदीरक असंख्यातगुणे हैं । सम्यक्त्व प्रकृतिके असंख्यात भागगुणहानिउदीरक सबसे स्तोक हैं । अवस्थितउदीरक असंख्यातगुणे हैं । असंख्यातभागवृद्धिउदीरक असंख्यातगुणे हैं । संख्यात गुणवृद्धिउदीरक असंख्यातगुणे हैं । संख्यातभागवृद्धिउदीरक संख्यातगुणे हैं । ये पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र अर्धच्छेदोंसे अपवर्तित सम्यक्त्वमें प्रविष्ट होनेवाले जीवोंकी राशि प्रमाण हैं । संख्यातगुणहानिउदीरक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, वे आवलिके असंख्यातवें भाग मात्र अर्धच्छेदोंसे अपवर्तित सम्यवत्वमें प्रविष्ट होनेवाले जीवों की राशि प्रमाण है । अवक्तव्य उदीरक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, यहां सम्यक्त्व में प्रविष्ट होनेवाले जीवोंकी राशिका ग्रहण है । संख्यात भागहानिउतीरक असंख्यातगुणे हैं । इसका कारण यह है कि अवक्तव्यउदीरक एक समय में प्रविष्ट होनेवाले जीव हैं, परन्तु संख्यातभागहानिउदीरक अन्तर्मुहूर्त के भीतर संख्यात वार संख्यातभागवृद्धिकाण्डकोंकी घातक सब प्रविष्ट राशि है । इसलिये संख्यात भागहानिउदीरक उनसे संख्यातगुणे हैं । असंख्यात भागहानिउदीरक असंख्यातगुणे हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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