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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे ट्ठिदिउदीरणा ( १६५ असंखेज्जभागहाणिउदीरया संखेज्जगुणा । एवं पंचणाणावरणीय-चउदसणावरणीयपंचंतराइयाणं धुवउदीरणासव्वणामपयडीणं च वत्तव्वं । __णिद्दाए वेदओ टिदिघादं ण करेदि। णिहाए वेदओ दिदिबंधं बंधदि । असादस्स चउढाणियजवमज्झादो संखेज्जगुणहीणं अंतोकोडाकोडीए हेढदो बंधतो वि सादस्स तिढाणिय-चदुढाणियाणि ण बंधदि, दुढाणियाणि चेव बंधदि । एवं णिद्दाटिदिउदीरणावड्ढिअप्पाबहुअस्स साहणं भणिदं । अप्पाबहुअं। तं जहा- सव्वत्थोवा णिदाए संखेज्जभागवढिउदीरया। संखेज्जगुणवड्ढिउदीरया असंखेज्जगुणा । असंखेज्जभागवड्ढिउदीरया अणंतगुणा । अवत्तव्वउदीरया संखेज्जगुणा। अवट्टिदउदीरया असंखेज्जगुणा। असंखेज्जभागहाणिउदीरया संखेज्जगुणा । एवं पयला-णिद्दाणिद्दापयलापयला-थीणगिद्धीणं पि वत्तव्वं । सव्वत्थोवा सादस्स संखेज्जगुणहाणिउदीरया। संखेज्जभागहाणिउदीरया संखेज्जगुणा । संखेज्जगुवणढिउदीरया असंखेज्जगुणा । संखेज्जभागवड्ढिउदीरया संखेज्जगुणा । असंखेज्जभागवड्ढिउदीरया अणंतगुणा । अवत्तव्वउदीरया संखेज्जगुणा । अवट्ठिदउदीरया असंखेज्जगुणा । असंखेज्जभागहाणिउदीरया संखेज्जगुणा । असाद-सोलसकसाय-हस्स-रदि-अरदि-सोगभय-दुगुंछाणं सादभंगो। णवरि चदुसंजलणाणमसंखेज्जगुणवड्ढि-हाणिउदीरया चार दर्शनावरणीय, पांच अन्तराय और ध्रुव उदीरणावली सब नामप्रकृतियोंके विषयमें प्रकृत अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये ।। निद्राका वेदक स्थितिघातको नहीं करता है। निद्राका वेदक स्थितिबन्धको बांधता है। वह असातावेदनीयके चतु:स्थानिक यवमध्यसे संख्यातगुणे हीन अन्तःकोडाकोडिके नीचे बन्धको बांधता हुआ भी सातावेदनीयके त्रिस्थानिक व चतूस्थानिक स्थितिबन्धको नहीं बांधता है, किंतु उसके द्विस्थानको ही बांधता है। यह निद्राकी स्थिति-उदीरणावृद्धिके अल्पबहुत्वका साधन कहा है। उसका अल्पबहुत्व कहा जाता है। यथा- निद्राके संख्यातभागवृद्धिउदीरक सबसे स्तोक हैं। संख्यातगुणवृद्धिके उदीरक असंख्यातगणे हैं। असंख्यातभागवद्धि उदीरक अनन्तगुणे हैं। अवक्तव्यउदीरक संख्यातगुणे हैं। अवस्थित उदीरक असख्यातगणे हैं। असंख्यातभागहानिउदीरक संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकारसे प्रचला, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, और स्त्यानगृद्धिके विषयमें भी प्रकृत अल्पबहुत्व कहना चाहिये। सातावेदनीयके संख्यातगुणहानिउदीरक सबसे स्तोक हैं। संख्यातभागहानिउदीरक संख्यातगुणे हैं। संख्यातगुणवृद्धिउदीरक असंख्यातगुणे हैं। संख्यातभागवृद्धिउदीरक संख्यातगुणे हैं। असंख्यातभागवद्धिउदीरक अनन्तगुणे हैं। अवक्तव्यउदीरक संख्यातगणे हैं। अवस्थित उदीरक असंख्यातगुणे हैं। असंख्यातभागहानिउदीरक संख्यातगुण हैं। असातावेदनीय, सोलह कषाय, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी यह प्ररूपणा सातावेदनीयके समान है। विशेष इतना है कि चार संज्वलन कषायोंके असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानि Jain Education unापती ' एवं ' इति पाठः। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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