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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे ट्ठिदिउदीरणा ( १६३. अवत्तव्वउदीरया भुजगारउदीरया संखेज्जगुणा। अवट्ठिदउदीरया असंखेज्जगुणा, अप्पदरउदीरया संखेज्जगुणा। णवंसयवेदस्स सव्वत्थोवा अवत्तव्वउदीरया, भुजगारउदीरया अणंतगुणा, अवट्ठिदउदीरया असंखेज्जगुणा, अप्पदरउदीरया संखेज्जगुणा। ____ आउआणं सव्वत्थोवा अवत्तव्वउदीरया, अप्पदरउदीरया असंखेज्जगुणा। णिरयगइणामाए सव्वत्थोवा भुजगारउदीरया, अवत्तव्वउदीरया असंखेज्जगुणा, अवट्ठिदउदीरया असंखेज्जगुणा, अप्पदरउदीरया संखेज्जगुणा। मणुसगइणामाए सव्वत्थोवा अवत्तव्वउदीरया, भुजगार उदीरया संखेज्जगुणा, अवट्ठिदउदीरया असंखेज्जगुणा, अप्पदरउदीरया संखेज्जगुणा। जहा णवंसयवेदस्स तहा तिरिक्खगइणामाए। देवगईए णिरयगइभंगो। ओरालियसरीरणामाए सव्वत्थोवा अवत्तव्वउदीरया, भुजगारउदीरया असंखेज्जगुणा, अवट्टिदउदीरया असंखेज्जगुणा, अप्पदरउदीरया संखेज्जगुणा। वेउव्विविवयसरीरणामाए देवगदिभंगो। संठाण-संघडणाणं ओरालियसरीरभंगो। णिरयाणुपुन्वीणामाए सव्वत्थोवा भुजगारउदीरया, अवद्विदउदीरया असंखेज्जगुणा, अप्पदरउदीरया संखेज्जगुणा, अवत्तव्वउदीरया विसेसाहिया। एवं मणुस-देवाणुपुव्वीणं । तिरिवखाणुपुव्वीणामाए सव्वत्थोवा भुजगारउदीरया, अवट्ठिदउदीरया असंखेज्जगुणा, अवत्तव्वउदीरया संखेज्जगुगा, अप्पदरउदीरया विसेसाहिया। उवघादभुजाकार उदीरक संख्यातगुणे हैं, अवस्थित उदीरक असंख्यातगुणे हैं, अल्पतर उदीरक संख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेदके अवक्तव्य उदी रक सबसे स्तोक हैं, भुजाकार उदीरक अनन्तगुणे हैं, अवस्थित उदीरक असंख्यातगुणे हैं, अल्पतर उदीरक संख्यातगुणे हैं। आयु कर्मोके अवक्तव्य उदीरक सबसे स्तोक हैं, अल्पतर उदीरक असंख्यातगुणे हैं। नरकगति नामकर्मके भुजाकार उदीरक सबसे स्तोक हैं, अवक्तव्य उदीरक असंख्यातगुणे हैं, अवस्थित उदीरक असंख्यातगुणे हैं, अल्पतर उदीरक संख्यातगुण हैं। मनुष्यगति नामकर्मके अवक्तव्य उदीरक सबसे स्तोक हैं, भुजाकार उदीरक संख्यातगुणे हैं, अवस्थित उदीरक असंख्यातगुणे हैं, अल्पतर उदीरक संख्यातगुणे हैं। जैसे नपुंसकवेदके विषयमें प्रकृत अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गयी है वैसे ही तिर्यंचगति नामकर्मके विषयमें भी उसे करना चाहिये । देवगतिकी प्रकृत प्ररूपणा नरकगतिके समान है । औदारिकशरीर नामकर्मके अवक्तव्य उदीरक सबसे स्तोक हैं, भुजाकार उदीरक असंख्यातगुणे हैं, अवस्थित उदीरक असंख्यातगुण हैं, अल्पतर उदीरक संख्यातगुणे हैं। वैक्रियिकशरीर नामकर्मकी यह प्ररूपणा देवगतिके समान है। संस्थानों और संहननोंकी यह प्ररूपणा औदारिकशरीरके समान है। नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकके भुजाकार उदीरक सबसे स्तोक हैं, अवस्थित उदीरक असंख्यातगणे हैं, अल्पतर उदीरक संख्यातगणे हैं, अवक्तव्य उदीरक विशेष अधिक हैं। इसी प्रकारसे मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वीके विषयमें प्रकृत प्ररूपणा करना चाहिये । तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मके भुजाकार उदीरक सबसे स्तोक हैं, अवस्थित उदीरक असंख्यातगुणे हैं, अवक्तव्य उदीरक संख्यातगुणे हैं, अल्पतर उदीरक विशेष अधिक हैं। ४ ताप्रती 'सव्वस्थोवा अवत्तव्ध उदीरया, भजगार. असंखे० गुणा, अवद्विद०' इति पाठः। Jain Education international For Poate & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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