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________________ १६० ) छक्खंडागमे संतकम्म उक्कस्सेण छावट्ठिसागरोवमाणि देसूणाणि। सम्मामिच्छत्तस्स भुजगार-अवट्ठिदउदीरणाओ पत्थि । अप्पदरउदीरणा जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुत्तं । सोलसण्णं कसायाणं भय-दुगंछाण च अप्पदरउदीरणा अवट्रिदउदीरणा च जहण्णण एंगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । जहा असादस्स तहा अरदि-सोगाणं । जहा सादस्स तहा हस्स-रदीणं । णवंसयवेदस्स अप्पदरउदीरणा जहण्णेण एयसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि । अवट्ठिदउदीरणा जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं इत्थिवेदस्स अप्पदरउदीरणा जहण्णण एयसमओ, उक्कस्सेण पणवण्णपलिदोवमाणि सादिरेयाणि। अवविदउदीरणा जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । पुरिसवेदस्स अप्पदरउदीरणा जहण्णण एयसमओ, उक्कस्सेण बे-छावट्ठिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । अवट्ठिदउदीरणा जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । कुढो? एदासु पयडीसु बज्झमाणासु कसायअवट्ठिदबंधस्स अंतोमुत्तमेत्तकालुवलं नादो। आउआणमप्पदरउदीरणा जहष्णेण सग-सगजहण्णट्ठिदी समयाहियावलियाए ऊणा। णवरि मगुस्साउअस्स एयो समयो। उक्कस्सेण सग-सगउक्कस्सटिदी समयाहियावलियाए हीणा। अन्तर्महर्त और उत्कर्षसे कुछ कम छयासठ सागरोपम प्रमाण है। सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजाकार और अवस्थित उदीरणा नहीं होती। उसकी अल्पतर उदीरणाका काल जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। ___ सोलह कषायोंकी तथा भय व जुगुप्साकी अल्पतर उदीरणा और अवस्थित उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। जिस प्रकार असातावेदनीयकी इन प्रकृत उदीरणाओंके कालकी प्ररूपणा की गयी है उसी प्रकार अरति व शोक की उक्त उदीरणाओंके कालकी प्ररूपणा करना चाहिये। जिस प्रकार सातावेदनीयकी उन उदीरणाओंके कालकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार हास्य व रतिकी भी उन उदी रणाके कालकी प्ररूपणा करना चाहिये । नपुंसकवेदकी अल्पतर उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे कुछ कम तेतीस सागरोपम प्रमाण है। उसकी अवस्थित उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त मात्र है। स्त्रीवेदकी अल्पतर उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक पचवन पल्य प्रमाण है। उसकी अवस्थित उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। पुरुषवेदकी अल्पतर उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक दो छयासठ सागरोपम प्रमाण है। उसकी अवस्थित उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहर्त मात्र है। इसका कारण यह है इन प्रकृतियोंके बंधनेपर कषायके अवस्थित बन्धका अन्तर्मुहुर्त मात्र काल पाया जाता है। आयु कर्मोंकी अल्पतर उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय अधिक आवलीसे हीन अपनी अपनी जघन्य स्थिति है। विशेष इतना है कि मनुष्यायुकी उक्त उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय है। उनकी उपर्युक्त उदीरणाका काल उत्कर्षसे एक समय अधिक आवलीसे हीन अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है। ४ काप्रतो 'खया' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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