________________
उवक्कमाणुयोगद्दारे ट्ठिदिउदीरणा
( १५७ साहिया। पंचण्णं दसणावरणीयाणं जहण्णठिदिउदीरणा संखेज्जगुणा, जट्ठि० विसेसाहिया। असण्णीसु जहण्णट्ठिदिउदीरणादंडओ समत्तो।।
भुजगारउदीरणाए अट्ठपदं- अप्पदराओ द्विदीओ उदीरेदूण अणंतरउवरिमसमए बहुदरासु ठिदिसु उदीरिदासु एसा भुजगारउदीरणा। बहुदराओ द्विदीओ उदीरेदूण अणंतरउवरिमसमए थोवासु उदीरिदासु अप्पदरउदीरणा । जत्तियाओ द्विदीओ एण्हि उदोरिदाओ अणंतरउवरिमसमए तित्तियासु चेवउ दीरिदासु एसा अवट्ठिदउदीरणा। अणुदीरएण उदीरिदे भुजगार-अप्पदर-अवट्टिदउदीरणाहि पुधभूदत्तादो एसा अवत्तव्वउदीरणा । एदमेत्थ अट्ठपदं। संपहि सामित्तं वुच्चदे। भुजगारउदीरओ को होदि ? अण्णदरो। अप्पदर-अवट्ठिद-अवत्तव्वउदीरओ को होदि ? अण्णदरो। णवरि धुवियाणमवत्तव्वउदीरगो पत्थि । एवं सामित्तपरूवणा गदा।
एयजीवेण कालो- पंचणाणावरणीयस्स भुजगारउदीरणा केबचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण एयसमओ, उक्कस्सेण संखेज्जाणि समयसहस्साणि । एइंदियस्स अप्पिदणाणावरणीयपयडीए उवरि अणप्पिदसंखेज्जसहस्सपयडिट्टिदीणं संकमेण संकंत
है। पांच दर्शनावरण प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति-उदीरणा संख्यातगुणी है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। असंज्ञियों में जघन्य स्थिति-उदीरणा-दण्डक समाप्त हुआ।
भुजाकारउदीरणामें अर्थपद- अल्पतर स्थितियोंकी उदीरणा करके आगेके अन्यतर समयमें बहुतर स्थितियोंकी उदीरणा करनेपर यह भुजाकार उदीरणा होती है। बहुतर स्थितियोंकी उदीरणा करके आगेके अनन्तर समयमें स्तोक स्थितियोंकी उदीरणा करनेपर अल्पतर उदीरणा होती है। जितनी स्थितियोंकी इस समय उदीरणा की गयी है आगेके अनन्तर समयमें उतनी ही स्थितियोंकी उदीरणा करनेपर यह अवस्थित उदीरणा होती है। अनुदीरकके द्वारा उदीरणा की जानेपर यह अवक्तव्य उदीरणा कही जाती है, क्योंकि, वह भुजाकार, अल्पतर व अवस्थित उदीरणाओंसे भिन्न है। यह यहां अर्थपद हुआ। अब स्वामित्वकी प्ररूपणा की जाती है। भुजाकार उदीरणा करनेवाला कौन होता है ? अन्यतर जीव भुजाकार उदीरक होता है । अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य उदीरक कौन होता है ? अन्यतर जीव उनका उदीरक होता है। विशेष इतना है कि ध्रुवोदयी प्रकृतियोंका अवक्तव्य उदीरक नहीं होता। इस प्रकार स्वामित्व प्ररूपणा समाप्त हुई।
एक जीवकी अपेक्षा काल-पांच ज्ञानावरण प्रकृतियोंकी भुजाकार उदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे संख्यात हजार समयों तक होती है। एकेन्द्रियके विवक्षित प्रकृतिस्थितिके आगे अविवक्षित संख्यात हजार प्रकृतिस्थितियोंके संक्रमसे संक्रान्त
४ काप्रती 'एसो' इति पाठः। * करणोदय-संताणं पगइहाणेसु सेसगतिगे य । भूयक्कारप्पयरो अवट्रिओ तह अवत्तव्यो । एगादहिगे पढमो एगाईऊणगम्मि बिइओ उ । तत्तियमेतो तइओ पढमे समये अवत्तब्वो ॥ क. प्र. ७, ५१-५२. प्रत्योरुभयोरेव 'दुवियाणमवत्तव्वा उदीरगो' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org