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दीरओ । ओरालियसरीरस्स सिया उदीरओ सिया अणुदीरओ । जदि उदीरओ उक्कस्सा अणुक्कस्सा वा । उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समऊणमादि कादूण जाव अंतोकोडाकोsति । वेउव्वियसरीरणामाए णिरयगइभंगो | तेजा -कम्मइयसरीराणं सुदणाणावरणभंगो | पंचसंठाण - पंचसंघडणाणं सादभंगो । हुंडठाणस्स असादभंगो । असंपत्त सेवट्टसंघडणस्स तिरिक्खगइभंगो । णिरयगइपाओग्गाणुपुव्वीए* सिया उदीरओ सिया अणुदीरओ । जदि उदीरओ उक्कस्सा अणुक्कस्सा वा । उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समयूणमादि काढूण जाव पल्लस्स असंखेज्जदिभागो ऊणो त्ति । एवं तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वीए । मणुसगइ - देवगइपाओग्गाणुपुव्वीणमणुदीरओ । उवघाद--परघाद-- उस्सास -- अपसत्थविहायगइ ---तस - - बादर -- पज्जत्त -- पत्तेय-सरीराणमसादभंगो। णवरि बादर - पज्जत्ताणं णियमा उदीरओ । उज्जोवणामाए सिया उदीरओ सिया अणुदीरओ। जदि उदीरओ उक्कस्सा अणुक्कस्सा वा । उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समऊणमादि काढूण जाव अंतोकोडाकोडीए । आदावस्स अणुदीरओ । पसत्थविहायगदि-थिर-सुभ-सुभग सुस्सर - आवेज्ज-जस कित्तीणं सादभंगो। णवरि थिर
छक्खंडागमे संतकम्मं
जातिनाम का वह नियमसे अनुदीरक होता है । औदारिकशरीरका कदाचित् उदीरक और कदाचित् अनुदीरक होता है। यदि उदीरक होता तो उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट दोनोंका उदीरक होता है । उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कमको आदि करके अन्तःकोडाकोडि सागरोपम प्रमाण तक होती है । वैक्रियिकशरीर नामकर्मकी प्ररूपणा नरकगतिके समान है । तैजस और कार्मण शरीरनामकर्मोंकी प्ररूपणा श्रुतज्ञानावरणके समान है। पांच संस्थानों और पांच संहनन की प्ररूपणा सातावेदनीयके समान है । हुंण्डकसंस्थानकी प्ररूपणा असातावेदनीयके समान है । असंप्राप्तासृपाटिकासंहननकी प्ररूपणा तिर्यंचगतिके समान है । नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका कदाचित् उदीरक और कदाचित् अनुदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो उत्कृष्ट और अनुत्कृष्टका उदीरक होता है । उत्कृष्टकी अपेक्षा यह अनुत्कृष्ट एक समय कमको आदि करके पल्योपमके असंख्यातवें भाग तक कम होती है। इसी प्रकार तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी प्ररूपणा समझना चाहिये । मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका वह अनुदीरक होता है । उपघात, परघात, उच्छ्वास, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त और प्रत्येकशरीर, इनके संनिकर्षकी प्ररूपणा असातावेदनीयके समान है। विशेष इतना है कि वह बादर और पर्याप्तका नियमसे उदीरक होता है । उद्योत नामकर्मका वह कदाचित् उदीरक और कदाचित् अनुदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट दोनों का उदीरक होता है । उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय कमको आदि करके अन्तः कोडाकोडि सागरोपम तक होती है । वह आतप नामकर्मका अनुदीरक होता है । प्रशस्त विहायोगति, थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय और यशकीर्तिकी प्ररूपणा सातावेदनीयके समान है । विशेष इतना है कि स्थिर और शुभका वह नियमसे उदीरक होता | अस्थिर,
उभयोरेव प्रत्यो: 'णिरय इगदेवाणुपुब्बीए' इति पाठ: ।
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ताप्रती ' वा ' इत्येतत्पदं नास्ति ।
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