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________________ १३८) छक्खंडागमे संतकम्म उक्कस्सेण तिण्णं पि जहणद्विदिउदीरणंतरमुवड्ढपोग्गलपरियढें । बारसण्णं कसायाणं जहण्णद्विदिउदीरणंतरं जहण्णण अंतोमुत्तं, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा। सादासाद-हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। भय-दुगुंछाणं बारसकसायभंगो। तिण्णं वेदाणं चदुण्णं संजलणाणं जहण्णट्ठिदिउदीरणंतरं जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण उवड्ढपोग्गलपरियट्रं। देव-णिरयाउआणं जहण्णण दसवाससहस्साणि सादिरेयाणि, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । मणुस-तिरिवखाउआणं जहण्णण खुद्दाभवग्गहणं समऊणं । उक्कस्सेण मणुस्साउअस्स असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, तिरिक्खाउअस्स सागरोवमसदपुधत्तं । तिणं गइणामाणं जहण्णटिदिउदीरणंतरं जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, उक्कस्सेण अणंतकालं। मणुसगईए णत्थि अंतरं, सजोगिचरिमसमए जहण्णटिदिउदीरणदसणादो। वेउव्वियसरीरणामाए जहण्णढिदिउदीरणंतरं जहण्णण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, उक्कस्सेण अणंतकालं । तिण्णं सरीराणं जहण्णद्विदिउदीरणंतरं जहण्णुक्कस्सेण णत्थि अंतरं। एवं दोण्णमंगोवंगणामाणं वेउव्वियसरीरअंगोवंगस्स की जघन्य स्थिति-उदीरणाका अन्तर उत्कर्षसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है । बारह कषायोंकी जघन्य स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्षसे असंख्यात लोक प्रमाण होता है । साता व असाता सेदनीय, हास्य, रति, अरति और शोककी जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तर जघन्यसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कर्षसे वह असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है । भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति उदीरणाके अन्तरकी प्ररूपणा बारह कषायोंके समान है । तीन वेदों और चार संज्वलन कषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है। देवायु और नारकायुकी जघन्य स्थितिकी उदीरणाका अन्तर जघन्यसे साधिक दस हजार वर्ष और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है। मनुष्यायु और तिर्यंचआयुकी जघन्य स्थितिकी उदी रणाका अन्तर जघन्यसे एक समय कम क्षुद्रभवग्रयण प्रमाण होता है । उत्कर्षसे उक्त अन्तर मनुष्यायुका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण तथा तिर्यंचआयुका सागरोपम शतपृथक्त्व प्रमाण होता है। तीन गतिनामकर्मोंकी जघन्य स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण तथा उत्कर्षसे वह अनन्त काल प्रमाण होता है। मनुष्यगति नामकर्मकी जघन्य स्थिति-उदीरणाका अन्तर नहीं होता, क्योंकि, जघन्य स्थितिकी उदीरणा सयोगकेवलीके अन्तिम समयमें देखी जाती है । वैक्रियिकशरीर नामकर्मकी जघन्य स्थिति उदीरणाका अन्तर जघन्यसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग और उत्कर्षसे अनन्त काल प्रमाण होता है । तीन शरीरोंकी जघन्य स्थिति-उदीरणा अन्तर जघन्य व उत्कर्षसे होता ही नही है । इसी प्रकारसे दो अंगोपांग नामकर्मोके उक्त अन्तरका कथन करना चाहिए । वैक्रियिक ___Jain Education Internationताप्रनो 'हस्स-रदि-सोगाणं' इति पाठ: IPersonal use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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