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________________ १२४ ) छक्खंडागमे संतकम्म देज्जणीचागोदवज्जाणमुक्कस्सट्ठिदिमुदीरेदूण तदो अणुक्कस्समेगसमयमुदीरिय कालगदस्स विग्गहगदस्स च, दुभग-अणादेज्ज-णीचागोदाणं पुण उत्तरविउव्विदस्स तदुवलंभादो। णवरि तसणामाए अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण उवघादणामाए अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, परघाद-उस्सास-अप्पसत्यविहायगइ-दुस्सराणं च तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि, उज्जोवणामाए देसूणतिणिपलिदोवमाणि, तसणामाए बे सागरोवमसहस्साणि सादिरेयाणि, पत्तयसरीरणामाए अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, दुभगअणादेज्ज-णीचागोदाणमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । . आदाव-सुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीरणामाणमुक्कस्सट्ठिदिउदीरणाकालो जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अणुक्कस्सटिदिउदीरणाकालो आदावणामाए जहणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण बाबीसवाससहस्साणि देसूणाणि। सुहुम-अपज्जत्त-साहारणाणं जहण्णकालो अंतोमुत्तं । उक्कस्सेण सुहुमणामाए असंखेज्जा लोगा, अपज्जत्तणामाए अंतोमुहुत्तं, साहारणसरीरणामाए अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो। पसत्थविहायगइ-जसगित्ति-सुभगादेज्जणामाणमुच्चागोदस्स य एदेसि कम्माणमुक्कस्सद्विदिउदीरणाकालो जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण एगावलिया। अणुक्कस्सटिदि उदोरणाकालो पसत्थविहायगइ--जसगित्ति--सुभगादेज्जाणं जहण्णेण एगसमओ। उदीरणा करके तत्पश्चात् उनकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी एक समय उदीरणा करके कालको प्राप्त होकर विग्रहको प्राप्त हुए जीवके उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका उपर्युक्त एक समय मात्र काल पाया जाता है; तथा दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रकी अनत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका वह एक समय रूप काल उत्तर शरीरकी विक्रियाको प्राप्त हए जीवके पाया जाता है। विशेष इतना है कि त्रस नामकर्मकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका काल जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त है। उत्कर्षसे अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल उपघात नामकर्मका अंगुलके असंख्यातवें भाग; परघात, उच्छ्वास, अप्रशस्त विहायोगति और दुस्वरका कुछ कम तेतीस सागरोपम; उद्योत नामकर्मका कुछ कम तीन पल्योपम, बस नामकर्मका साधिक दो हजार साारोपम, प्रत्येकशरीर नामकर्मका अंगुलके असंख्यातवें भाग; तथा दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण नामकर्मोकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल जघन्य व उत्कर्षसे एक समय है। उनमें अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका काल आतप नामकर्मका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त व उत्कर्षसे कुछ कम बाईस हजार वर्ष प्रमाण है ; सूक्ष्म अपर्याप्त व साधारण नामकर्मोंकी अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे अन्तर्मुहर्त है। उत्कृर्षसे वह सूक्ष्म नामकर्मका असंख्यात लोक, अपर्याप्त नामकर्मका अन्तर्मुहुर्त, तथा साधारणशरीर नामकर्मका अंगुलके असंख्यातवें भाग है। प्रशस्त विहायोगति, यशकीति, सुभग व आदेय नामकर्मोकी तथा उच्चगोत्र इन कर्मोकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक आवली मात्र है। अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका काल प्रशस्त विहायोगति, यशकीर्ति, सुभग और आदेय नामकर्मोंका जघन्यसे Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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