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________________ १२२ ) छक्खंडागमे संतकम्म सागरोमवसहस्सं पुव्वकोडिपुधत्तेणब्भहियं ।। ओरालियसरीरणामाए उक्कस्सट्ठिदिउदीरणाकालो जहण्गेण एगसमओ, उक्कस्सेण एगावलिया। अणुक्कस्सटिदिउदीरणाकालो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो। वेउव्वियसरीरणामाए उक्कस्सट्ठिदिउदीरणाकालो जहपणेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुत्तं । अणुक्कस्सट्ठिदिउदोरणाकालो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि। आहारसरीरणामाए उक्कस्सद्विदिउदीरणाकालो जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अणुक्कस्सटिदिउदोरणाकालो जहण्णुककस्सेण अंतोमुहत्तं ओरालियसरीरअंगोवंगणामाए उक्कस्सट्टिदिउदीरणाकालो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण एगावलिया। अणुक्कस्सट्ठिदिउदीरणाकालो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि । वेउव्विय-आहारसरीरअंगोवंगणामाणं वेउग्विय-आहारसरीरणामाणं भगो। पंचबंधण-पंचसंघादणामाणं पंचसरीरभंगो। पंचण्णं संठाणाणं उक्कस्सटिदिउदीरणाकालो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण एगावलिया। अणुक्कस्सटिदिउदीरणाकालो समचउरससंठाणस्स जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण तेवढिसागरोवम-सदं सादिरेयं । सेसाणं चदुण्णं संठाणाणं जहण्णेण एगसमओ, क्षुद्र भवग्रहण अथवा अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कर्षसे पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक एक हजार सागरोपम है । औदारिकशरीर नामकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक आबली मात्र है। उसकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र है। वैक्रियिकशरीर नामकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहर्त है। उसकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण है। आहारकशरीर नामकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल जघन्य व उत्कर्षसे एक समय है। उसकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका काल जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त है । औदारिकशरीरांगोपांग नामकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक आवली मात्र है। उसकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक तीन पल्योपम मात्र है। वैक्रियिक और आहारक शरीरांगोपांग नामकर्मोंकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाके कालकी प्ररूपणा वैक्रियिक और आहारक शरीरनामकर्मोके समान है। पांच बंधन और संघात नामकर्मोंकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाके कालकी प्ररूपणा पांच शरीरोंके समान है। पांच संस्थान नामकर्मोकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक आवली मात्र है। उनमें समचतुरस्रसंस्थानकी अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक एक सौ तिरेसठ सागरोपमप्रमाण है। शेष चार संस्थानोंकी अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है । 0 ताप्रती ' अगुक्क० टिदिउदीरणकालो। समचउरससंटाणस्स' इति पाठः । Jain Education Internetonal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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