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________________ areमाणुयोगद्दारे दिउदीरणा ( ११७ बंधावेयध्वं पढसमयपबद्धस्स आवलियकाले गदे तस्स जहणिया द्विदिउदीरणा । वण-गंध-रस- फासाणं जहण्णट्ठिदिउदीरणा कस्स ? चरिमसमयसजोगिस्स । णिरयाणुपुवीए जहण्णट्ठिदिउदीरणा कस्स ? असण्णिपच्छायदस्स तप्पा ओग्गजहण्णट्ठिदिसंतकम्मस्स दुसमयणेरइयस्स । मणुस्साणुपुव्वीए जहण्णट्ठिदिउदीरणा कस्स? जो बादरेइंदिओ हदसमुत्पत्तियकम्मेण सव्वचिरं जहण्णट्ठिदिसंतकम्मादो हेट्ठा बंधिन से काले संतकम्मस्स उवरि बंधिहिदि त्ति मणुस्सो जादो तस्स दुसमयमणुसस्स जहणट्ठिदिउदीरणा । जहा देवगदिणामाए जहण्णसामित्तं परुविदं तहा देवगइपाओग्गाणुपुartणामाए परूdeoवं । णवरि देवेसुप्पण्णबिदियसमए जहण्णसामित्तं वत्तव्वं । तिरि- इपाओग्गाणुपुव्वीजहण्ण द्विदिउदीरणाए को सामी ? जो तेउकाइयो वाउकाइयो वा सव्वविसुद्ध सव्वजहण्णेण द्विदिसंतकम्मेण मदो सण्णितिरिक्खजोणिएसु विग्गहगदी उबवण्णो तस्स बिदियसमयतन्भवत्थस्स । अगुरुअलहुअ -उवघाद-परघादउस्सास-पसत्यापसत्य विहायगदि तस - बादर - पज्जत्त - पत्तेयसरीर-थिराथिर - सुहासुह समय में बांधने के पश्चात् आवली मात्र कालके बीतनेपर उसके विवक्षित संहनन सम्बन्धी जघन्य स्थिति - उदीरणा होती है। वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श सम्बन्धी जघन्य स्थिति उदीरणा किसके होती है ? वह अन्तिम समयवर्ती सयोगकेवलीके होती है । नरकगत्यानुपूर्वी सम्बन्धी जघन्य स्थिति- उदीरणा किसके होती है ? वह असंज्ञी जीवोंमेंसे पीछे आये हुए ऐसे तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिसत्त्व युक्त द्वितीय समयवर्ती नारक जीवके होती है । मनुष्यगत्यानुपूर्वी सम्बन्धी जधन्य स्थिति उदीरणा किसके होती है ? जो बादर एकेन्द्रिय जीव हतसमुत्पत्तिक कर्मके साथ सर्वचिरकाल तक जघन्य स्थितिसत्त्वसे कर्मको बांधकर अनन्तर कालमें उक्त स्थितिसत्त्वके ऊपर बांधेगा कि इस बीच में जो मनुष्य हुआ है उसके मनुष्य भवके द्वितीय समयमें जघन्य स्थिति- उदीरणा होती है । जिस प्रकार देवगति नामकर्मके जघन्य स्वामित्वकी प्ररूपणा की गई हैं उसी प्रकार से देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मके जघन्य स्वामित्वकी प्ररूपणा करना चाहिये । विशेष इतना है कि देवोंमें उत्पन्न होनेके द्वितीय समय में जघन्य स्वामित्व कहना चाहिये । तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी सम्बन्धी जघन्य स्थिति - उदीरणाका स्वामी कौन है ? जो सर्वविशुद्ध तेजकायिक अथवा वायुकायिक जीव सर्वजघन्य स्थितिसत्त्व के साथ मरकर विग्रहगति द्वारा संज्ञी तिर्यंचयोनि जीवोंमें उत्पन्न हुआ है उसके तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समय में तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी सम्बन्धी जघन्य स्थिति - उदीरणा होती है । अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, वेयणिया ( य ) नोकसाया सम्मत्त सघडणपंच-नीयाणं । तिरियदुग- अयस दुभंगणा इज्जाणं च सनिगए । क. प्र. ४, ३७. सहननपंचकस्य तु मध्ये वेद्यमान संहननं मुक्त्वा शेषसंहननानां प्रत्येकं बन्धकालोऽतिदीर्घो वक्तव्यः । ततो वेद्यमान संहननस्य बन्धे वन्धावलिकाचरमसमये जघन्या स्थित्युदीरणा । ( मलय. ) एकेन्द्रियः सर्वजघन्यमनुष्यानुपूर्वीस्थिति सत्कर्मा एकेन्द्रियभवादुद्धृत्य मनुष्येषु मध्ये उत्पद्यमानोऽपान्तलगतौ वर्तमान मनुष्यानुपूर्व्यास्तृतीयसमये जघन्यस्थितित्युदीरणास्वामी भवति । क. प्र. ( मलय ) ४, ३८. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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