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________________ ११४ ) छक्खंडागमे संतकम्म हस्स-रदीणं सादभंगो। अरदि-सोगाणमसादभंगो। भय-दुगुंछाणं बारसकसायभंगो। तिण्णं वेदाणं कोधसंजलणस्स भंगो। णवरि जस्स जस्स वेदस्स इच्छिज्जदि तस्स तस्स वेदस्सुदएण खवगुवसामगसेडीयो चढाविय समयाहियावलियचरिमसमयसवेदस्स जहण्णट्ठिदिउदीरणा वत्तव्वा । आउआणं जहण्णद्विदिउदीरणा कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयतब्भवत्थस्स। णिरयगइणामाए जहणिया टिदिउदीरणा कस्स ? जो असण्णिपंचिदियो तप्पाओग्गजहण्णद्विदिसंतकम्मिओ तप्पाओग्गुक्कस्सियाए द्विदीए पढमपुढविणेरइएसु उववण्णो तस्स चरिमसमयणेरइयस्स जहणिया दिदिउदीरणा। तिरिक्खगइणामाए जहणिया टिदिउदीरणा कस्स ? जो तेउकाइयो वा वाउकाइयो वा हदसमुप्पत्तिकमेण सव्वचिरं जहण्ण द्विदिसंतकम्मस्स हेट्ठा बंधिदूण सण्णिपंचिदियतिरिक्खेसुववग्णो, उप्पण्णपढमसमए चेव मणुसगइबंधगो जादो, पुणो तं सव्वचिरं बंधिऊण तदो तिरिक्खगई बद्धा तस्सावलियकालं बंधमाणस्स तिरिक्खगईए जहणिया द्विदिउदीरणा। तेउकाइय-वाउकाइयपच्छायदो तिरिक्खगई उदीरणाका कथन सातावेदनीयके समान है। अरति और शोककी जघन्य स्थिति-उदीरणाका कथन असातावेदनीयके समान है। भय व जुगुप्साकी जघन्य स्थिति-उदीरणाका कथन बारह कषायोंके समान करना चाहिए । तीन वेदोंकी प्ररूपणा संज्वलनक्रोधके समान है। विशेष इतना है कि जो जो वेद अभीष्ट हो उस उस वेदके उदयसे क्षपक अथवा उपशम श्रेणिपर चढाकर अन्तिम समयवर्ती सवेद रहने में एक समय अधिक आवलिके शेष रहनेपर जघन्य स्थिति-उदीरणाका कथन करना चाहिये। आयु कर्मोंकी जघन्य स्थिति-उदीरणा किसके होती है? अन्तिम सयमवर्ती तद्भवस्थ होने में जिसके एक समय अधिक आवली मात्र शेष रही है उसके आयु कर्मोंकी जघन्य स्थिति-उदीरणा होती है । नरकगति नामकर्मकी जघन्य स्थिति-उदीरणा किसके होती है? जो तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिसत्कर्मवाला असंज्ञी पंचेंद्रिय जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट आयु स्थितिके साथ प्रथम पृथिवीके नारक जीवोंमें उत्पन्न हुआ है उस अन्तिम समयवर्ती नारक जीवके उसकी जघन्य स्थिति-उदीरणा होती है। तिर्यंचगति नामकर्मकी जघन्य स्थिति-उदीरणा किसके होती है? जो तेजकायिक अथवा वायुकायिक जीव हतसमुत्पत्तिक कर्मके साथ सर्वचिर काल तक जघन्य स्थितिसत्वके नीचे बांधकर संज्ञी पंचेंद्रिय तिथंच जीवोंमें उत्पन्न हुआ है तथा उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें ही मनुष्यगतिका बन्धक हुआ है, पश्चात् सर्वचिर काल तक उसे बांधकर जिसने तिर्यंचगतिका बन्ध किया है, आवली मात्र काल तक बांधनेवाले उसके तिर्यंचगतिकी जघन्य स्थिति-उदीरणा होती है। तेजकायिक और वायुकायिक 8 काप्रतौ ‘बद्धो' इति पाठः। * तथा तेजस्कायिको वायुकायिको वा बादरः सर्वजघन्यस्थितिसत्कर्मा पर्याप्त-संज्ञि-तिर्यक्पंचेन्द्रियेषु मध्ये समत्पन्नः । ततो बृहत्तरमन्तर्मुहूर्तकालं यावन्मनुजगति बध्नाति । तदबध्नानन्तर च तिर्यग्गति बद्धमारमते । ततो बन्धावलिकायाश्चरमसमये तस्यास्तिर्यग्गते जघन्यां स्थित्य दीरणां करोति । क. प्र. (मलय.) ४, ३७.se Only Jain Education Internatid www.jainelibrary.org.
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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