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उवक्कमाणुयोगद्दारे ठिदिउदीरणा
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घेत्तव्यो । जहा णाणावरणीयस्स परूविदं तहा चत्तारिदसणावरणीय-असादावेदणीयमिच्छत्त-सोलसकसाय-अरदि-सोग-भय-दुगुंछा-णवंसयवेद-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्णगंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-णिमिण-डंडसंठाण-णीचागोद-पंचंतराइयाणं च वत्तव्वं ।
सादस्स उक्कस्सििदउदीरगो को होदि ? जो असादस्स उक्कस्सियं हिदि बंधेदूण पडिभग्गो संतो सादं बंधमाणो आवलियूणमसादुक्कस्सद्विदि पडिच्छिय संकमणावलियकालं गमिय उदयावलियबाहिरसम्वविदीओ ओकड्डिय उदए णिसिंचमाणो। एवं हस्स-रदि-पुरिस-इत्थिवेदाणं । थीणगिद्धितिय-णिद्दा-पयलाणमुक्कस्सटिदिउदीरओ को होदि? जो उक्कस्सियं द्धिदि बंधियूण पडिभग्गो संतो पंचण्णमेक्कदरपयडीए पवेसओ उदयावलियबाहिरसव्वद्विदीओ बंधावलियादिक्कताओ ओकड्डियूण उदए संछुहमाणो। थीणगिद्धितियस्स उक्कस्सटिदिउदीरओ* णियमा पज्जत्तओ। सम्मत्तस्स उक्कस्सट्ठिदिउदीरओ को होदि? जो मिच्छत्तस्स उक्कस्सदिदि बंधियूण अंतोमुत्तेण पडिभग्गो चेव सम्मत्तं पडिवण्णो तस्स बिदियसमयसम्माइट्ठिस्स । सम्मामिच्छत्तस्स सो चेव सम्माइट्ठी सम्मामिच्छाइट्ठी जादो, तस्स उक्कस्सद्विदिउदीरणा*।
करना चाहिये।
जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाके स्वामित्वकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार चार दर्शनावरणीय, असाता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, अति, शोक, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, निर्माण, हुण्डकसंस्थान, नीचगोत्र और पांच अन्तराय प्रकृतियोंके भी स्वामित्वकी प्ररूपणा करना चाहिये।
साता वेदनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक कौन होता हैं ? जो असाता वेदनीयकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर प्रतिभग्न होकर साता वेदनीयकी बांधता हुआ एक आवलीसे हीन असाताकी उत्कृष्ट स्थितिको सातारूप सक्रान्त कर व संक्रमणावलीकालको विताकर उदयावलीके बाहरकी सब स्थितियोंका अपकर्षण करके उदयमें देता है वह साता वेदनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है। इसी प्रकार हास्य, रति, पुरुष और स्त्री वेदके स्वामित्वकी प्ररूपणा करना चाहिये । स्त्यानगृद्धि आदिक तीन, निद्रा और प्रचलाकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक कौन होता है? जो उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर प्रतिभग्न होता हुआ उक्त पांच प्रकृतियोंमेंसे किसी एकका उदीरक होकर बन्धावलीसे अतिक्रान्त उदयावलीके बाहिरकी सब स्थितियोंका अपकर्षण कर उदयमें दे रहा है वह उनकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है । स्त्यानगृद्धि आदि तीनकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक निययसे पर्याप्तक जीव होता है । सम्यक्त्व प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक कौन होता है? जो मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधक र अन्तर्मुहुर्तमें प्रतिभग्न होकर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है उसके सम्यग्दृष्टि होनेके द्वितीय समयमें सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा होती है। वहीं सम्यग्दृष्टि सम्बग्मिथ्यादृष्टि हो गया, तब उसके सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा होती है।
* काप्रतौ 'टिदिउदीरणा णियमा', ताप्रती 'टिदि उदीरणा (ओ)' इति पाठः। * तथा सप्ततिसागरोपम
दृष्टिना सता बद्धा। ततोऽन्तर्महत कालं यावन्मिथ्यात्वमनभय Jain Educatio सम्यक्त्वं प्रतिपद्यते । ततः सम्यक्त्वे साम्यग्मिथ्यात्वे चन्तर्मुहूर्तानां मिथ्यात्वस्थिति सकलामपि संक्रमयति helibrary.org