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छक्खंडागमे संतकम्म सरीरं छण्णं संठाणाममेक्कदरं ओरालियसरीरअंगोवंगं छण्णं संघडणाणमेक्कदरं उवघाद-पत्तेयसरीरं च घेत्तूण पक्खित्ते छन्वीसाए ट्ठाणं होदि। सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स अपज्जत्तमवणिय परघादं पसत्थापसत्थविहायगदीणमेक्कदरं च घेत्तूण पक्खित्ते अट्ठावीसाए ठाणं होदि। आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स उस्सासे पक्खित्ते एगुणतीसाए ट्ठाणं होदि । भासापज्जत्तीए पज्जत्तयवस्स सुस्सर-दुस्सराणमेक्कदरे पक्खित्ते तीसाए ट्ठाणं होदि।
संपहि आहारसरीरोदइल्लाणं विसेसमणस्साणं भण्णमाणे तेसि पंचवीससत्तावीस-अट्ठावीस-एगुणतीसं चेदि चत्तारिउदीरणढाणागि। मणुसगइ-पंचिदियजादिआहार-तेजा*-कम्मइयसरीर-समचउरससंठाण--आहारसरीरअंगोवंग-वण्ण-गंध-रसफास-अगुरुअलहुअ-उवघाद-तस--बादर-पज्जत्त-पत्तयसरीर-थिराथिर-सुभासुभ-सुभग-- आदेज्ज-जसगित्तिणिमिणं चेदि एदासि पणुवीसपयडीणमेक्कमुदीरणट्ठाणं । सरीरपज्जतीए पज्जत्तयदस्स परघाद-पसत्थविहायगदीसु पक्खित्तासु सत्तावीसाए द्वाणं होदि । आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स उस्सासे पक्खित्ते अट्ठावीसाए ट्ठाणं होदि। भासापज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स सुस्सरे पक्खित्ते एगुणतीसाए ट्ठाणं होदि । विसेसविसेसमणुस्साणं वीस-एक्कवीस-छव्वीस-सत्तावीस-अट्ठावीस-एगूणतीस-तीस
शरीरांगोपांग, छह संहननोंमें एक, उपघात और प्रत्येकशरीर इन प्रकृतियोंको ग्रहण करके मिला देनेसे छब्बीस प्रकृतियोंका स्थान होता है । शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त हो जानेपर अपर्याप्तको कम करके परघात और प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगतियोंमेंसे एक, इन दो प्रकृतियोंको ग्रहण करके मिला देनेपर अट्ठाईस प्रकृति रूप स्थान होता है। आनप्राणपर्याप्तिसे पर्याप्त हो जानेपर उच्छ्वासके मिला देनेसे उनतीस प्रवृत्ति रूप स्थान होता है। भाषापर्याप्तिसे पर्याप्त होनेपर सुस्वर और दुस्वरमेंसे किसी एक प्रकृतिके मिला देनेसे तीस प्रकृतिरूप स्थान होता है ।
__अब आहारशरीरके उदयसे संयुक्त विशेष मनुष्योंके उदीरणास्थानोंका कथन करनेपर उनके पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस और उनतीस प्रकृति रूप चार उदी रणास्थान होते हैं। मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, आहारक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, आहारकशरीरांगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, आदेय, यशकीर्ति और निर्माण नामकर्म ; इन पच्चीस प्रकृतियोंका एक उदीरणास्थान होता है। शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त होनेपर उपर्युक्त प्रकृतियोंमें परघात और प्रशस्तविहायोगतिके मिला देनेसे सत्ताईस प्रकृति रूप स्थान होता है। आनप्राणपर्याप्तिसे पर्याप्त होनेपर उच्छ्वासके मिला देनेसे अट्ठाईस प्रकृति रूप स्थान होता है। भाषापर्याप्तिसे पर्याप्त होनेपर सुस्वरके मिला देनेसे उनतीस प्रकृति रूप स्थान होता है ।
विशेषविशेष मनुष्योंके बीस, इक्कीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और
* काप्रती 'जादि-तेजा' इति पाठः । Jain Education International
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