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उवक्कमाणुयोगद्दारे णामकम्मोदी रणद्वाणपरूवणा
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हुंडठाण - ओरालियस रीरंगोवंग असंपत्तसेवट्टसंघडण उवघाद-पत्तेयसरीरेसु पक्खित्तेसु छवीसाए ट्ठाणं होदि । तं कस्स ? बेइंदियस्स सरीरपज्जत्तीए अपज्जत्तयदस्स । तं केवचिरं ? जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । सरीरर्पज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स पुव्वुत्तपयडीसु अपज्जत्तमवणिय परघाद- अप्पसत्थविहायगदीसु पक्खित्तासु अट्ठावीसाए द्वाणं होदि । आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स पुव्वुत्तपयडीसु उसासे पक्खित्ते एगुणतीसट्ठाणं होदि । भासापज्जत्तीए पज्जरायदस्स पुव्वुत्तपयडीसु दुसरे पक्खित्ते तीसाए ट्ठाणं होदि ।
संपहि उज्जोवुदयसंजुत्तबेइंदियस्स भण्णमाणे एक्कवीस-छब्बीसाओ जधा पुन्वं वुत्ताओ तधा वत्तव्वाओ। पुणो छब्बीसाए उवरि परधादुज्जोव - अप्पसत्थविहायगदीसु पक्खित्तासु एगुणतीसाए ट्ठाणं होदि । आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स उस्सासे पक्खिते तीसाए ट्ठाणं होदि । भासापज्जत्तीए पज्जतयदस्स दुसरे पक्खित्ते एक्कतीसा ट्ठाणं होदि । एदस्स कालो जहणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अंतोमुहुतूणबारसवासाणि । एवं तेइंदिय- चउरिदियाणं पि वत्तव्वं । णवरि तीसेवकत्ती साणं कालो जहाकमेण एगुणवण्णरादिदियाणि छम्मासा अंतोमुहुत्तूणा ।
हुण्डकसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन, उपघात और प्रत्येकशरीर; इन छह प्रकृतियों को मिला देनेपर छब्बीस प्रकृतिक स्थान होता है । वह किसके होता है ? वह शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त न हुए द्वीन्द्रिय जीवके होता है। वह कितने काल रहता है ? वह जघन्य व उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त रहता है। शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त हुए द्वीन्द्रिय जीवकी पूर्वोक्त प्रकृतियोंमें अपर्याप्त को कम करके अर्थात् पर्याप्त के साथ परघात और अप्रशस्त विहायोगतिको मिला देनेपर अट्ठाईस प्रकृति रूप स्थान होता है । आनप्राणपर्याप्ति से पर्याप्त हुए उक्त जीवकी पूर्वोक्त प्रकृतियोंमें उच्छ्वास के मिला देनेपर उनतीस प्रकृति रूप स्थान होता है । भाषापर्याप्ति से पर्याप्त हुए उक्त जीवकी पूर्वोक्त प्रकृतियों में दुस्वरको मिला देनेपर तीस प्रकृति रूप स्थान होता है ।
अब उद्योतके उदयसे संयुक्त द्वीन्द्रिय जीवके स्थानोंका कथन करते समय इक्कीस और छब्बीस प्रकृति रूप स्थानोंकी प्ररूपणा जैसे पहिले की गई है वैसे ही करना चाहिये । पुनः छब्बीस प्रकृति रूप स्थानके ऊपर परघात, उद्योत और अप्रशस्त विहायोगति इन तीन प्रकृतियोंको मिला देनेपर उन तीस प्रकृति रूप स्थान होता है । आनप्राणपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवके एक उच्छ्वास प्रकृतिके मिला देनेपर तीस प्रकृति रूप स्थान होता है । भाषापर्याप्तिसे पर्याप्त हुए उक्त जीवके दुस्वर प्रकृतिके मिला देनेपर इकतीस प्रकृति रूप स्थान होता है । इसका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त कम बारह वर्ष प्रमाण है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवोंके भी स्थानोंका कथन करना चाहिये । विशेष इतना है कि तीस और इकतीस प्रकृति रूप स्थानोंका काल यथाक्रमसे अन्तर्मुहूर्त कम उनंचास रात्रि - दिवस और अन्तर्मुहूर्त कम छह मास प्रमाण है ।
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Jain Education Inted काप्रती पज्जत्तयदस्स
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Poll अ.) पज्जत यदस्स' इति पाठः ।
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