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________________ ५, ६, ६८६ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण बादरणिगोदजीवपज्जत्तयाणं आउअबंधजवमज्झं ।। ६८६ ॥ उप्पण्णपढमसमयप्पडिसगजहण्णाउअस्स बेतिभागमेतमद्धाणं गंतूण तदियतिभागपढमसमए बादरणिगोदपज्जत्तजीवा आउअबंधया थोवा होता वि सुहमणिगोदपज्जत्ततवियतिभागपढमसमयादो अंतोमहत्तं हेट्ठा ओसरिदूण एदमाउअबंधढाणं होदि । किं कारणं? जेण नादरणिगोदो घादेण थोवमाउअं टुवेदि ति। तदुवरिमसमए बादरणिगोदपज्जत्ता आउअबंधया जीव विसेसाहिया। एवं विसेसाहिया विसेसाहिया होदूण गच्छंति जाव सुहुपपज्जत्ताउअबंधतदियतिभागपढमसमयो ति । तदुवरि विसेसाहिया जाव सुहमपज्जत्ताउअबंधजवमज्झे ति । तदुवरि विसेसाहिया जाव बादरपज्जत्ताउअबंधजवमज्झे त्ति । तदुवरि विसेसहीणा जाव सुहमचरिमआउअबंधठाणे त्ति । तदुवरि विसेसहीणा बादरउक्कस्साउअबंधणिल्लेवणढाणे त्ति । तदुवरि अंतोमुहुत्तं गंतूण असंखेपद्धार होदि । असंखेपद्धाए उवरि+ अंतोमहत्तं गंतूण बावर. सुहमणिगोदपज्जत्ताणं घादजणिदं सव्वजहण्णजीवणियट्ठाणं होदि ।। तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण सुहमणिगोदजीवपज्जत्तयाणं मरण उसके बाद अन्तर्मुहूर्त जाकर बादर निगोद पर्याप्त जीवोंका आयुबन्धयवमध्य होता है ॥६८६॥ उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर सबसे जघन्य आयुके दो तीन भागप्रमाण अध्वान जाकर तृतीय त्रिभागके प्रथम समयमें आयुका बन्ध करनेवाले बादर निगोद पर्याप्त जीव सबसे थोडे हैं। ऐसा होते हुए भी सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके तृतीय त्रिभागके प्रथम समयसे अन्तर्मुहूर्त पीछे सरक कर यह आयुबन्धस्थान होता है। कारण क्या है ? क्योंकि, बादर निगोद जीव घात द्वारा स्तोक आयुको शेष रखता है। उससे उपरिम समयमें आयुका बन्ध करनेवाले बादर निगोद पर्याप्त जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके आयुबन्धके तीसरे विभागके प्रथम समयके प्राप्त होने तक विशेष अधिक विशेष अधिक होकर जाते हैं। उससे ऊपर सूक्ष्म पर्याप्तके आयुबन्ध यवमध्यके प्राप्त होने तक विशेष अधिक होते हैं। उससे ऊपर बादर पर्याप्तके आयबन्ध यवमध्यके प्राप्त होने तक विशेष अधिक होते हैं। उससे ऊपर सूक्ष्म निगोद पर्याप्तके अन्तिम आयुबन्ध स्थानके प्राप्त होने तक विशेष हीन होकर जाते हैं। उससे ऊपर बादर निगोद पर्याप्तके उत्कृष्ट आयुबन्ध निर्लेपनस्थानके प्राप्त होने तक विशेष हीन होकर जाते हैं। उससे ऊपर अन्तर्मुहर्त जाकर आसंक्षेपाद्धा होता है । आसंक्षेपाद्धासे ऊपर अन्तर्मुहूर्त जाकर बादर निगोद पर्याप्तको व सूक्ष्म निगोद पर्याप्तकोंका घातसे उत्पन्न हुआ सबसे जघन्य जीवनीय स्थान होता है। उसके बाद अन्तर्मुहूर्त जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्तक जीवोंका मरण यवमध्य प्रत्यो ' असंखेयद्धा ' इति पाठः। * प्रत्यो। ' असंखेयद्धा उवरि' इति पाठ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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