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________________ ४८२ ) उपखंडागमे वग्गणा-खं ( ५, ६, ६२२ केत्तियमेत्तेण ? अपढम-अचरिमसमएस वक्कमिदजीवमेतेण । सव्वेस समएस वक्कमति जीवा विसेसाहिया ॥ ६२२ ॥ केत्तियमेत्तेण ? चरिमसमए वक्कमिदजीवमेत्तेण । एवं पढमकंडयजीवअप्पाबहुअं परूविदं । जहा पढमकंडयस्स एवं जीवअप्पाबहुअं परूविदं तहा सेससव्वकंडयाणं पि परवेदव्वं, विसेसाभावादो। संपहि णाणाकंडयजीवअप्पाबहुअं वत्तइस्सामो । तं जहा--- सव्वत्थोवा चरिमसमए वक्कमंति जीवा ॥ ६२३ ॥ आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तसांतरवक्कमणकंडयाणं चरिमकंडयचरिमसमए वक्कमिदजीवा थोवा । अपढम-अचरिमसमएस वक्कमंति जीवा असंखेज्जगुणा ।६२४॥ पढमकंडयपढमसमए चरिमकंडयारमसमए वक्कमिदजीवे मोत्तण सेसआवलियाए असंखेज्जविभागमेत्तकंडयाणं जीवा अपढम-अचरिमसमएसु वक्ता णाम । ते असंखेज्जगणा। को गणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो। अपढमसमए वक्कमंति जीवा विसेसाहिया ॥ ६२५ ॥ कितने अधिक हैं ? अप्रथम-अचरम समयोंमें उत्पन्न हुए जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं। सब समयोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव विशेष अधिक हैं ॥ ६२२ ॥ कितने अधिक हैं ? अन्तिम समयमें उत्पन्न हुए जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं। इस प्रकार प्रथम काण्डकसम्बन्धी जीव अल्पबहुत्वका कथन किया। जिस प्रकार प्रथमकांडकका यह जीव अल्पबहुत्व कहा है उसी प्रकार शेष सब कांडकोंके जीव अल्पबहत्वोंका भी कथन करना चाहिए। अब नाना कांडकसंबंधी जीव अल्पबहुत्वको बतलावेंगे । यथा-- अन्तिम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव सबसे थोडे हैं ।। ६२३ ।। सान्तर उपक्रमणकाण्डक आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। उनके अन्तिम काण्डकके अन्तिम समयमें उत्पन्न हुए जीव थोडे हैं । अप्रथम-अचरम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ।। ६२४ ।। प्रथम काण्डकके प्रथम समयमें और अन्तिम काण्डकके अन्तिम समयमें उत्पन्न हुए जीवोंको छोडकर शेष आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काण्डकोंके जीव अप्रथम-अचरमसमयों में उत्पन्न होनेवाले कहलाते हैं। वे असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । अप्रथम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव विशेष अधिक हैं ।। ६२५ ॥ ४ अ० प्रती 'जीवा ' इति स्थाने ' जीवा विसेसाहिया' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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