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________________ ४६२) छक्खंडागमे वग्गणा-खं ( ५, ६, ५५५. उक्कस्सओ विस्सासुवचओ बादरणिगोदजहण्णविस्तासुवचयादो अणंतगुणो । बादरणिगोदवग्गणाए आवलियाए असंखे० भागमेत्तपुलवियासु अणंतजीवा अस्थि । सुहमणिगोदवग्गणाए उक्कस्सियाए वि अणंता जीवा अत्थि किंतु बादरणिगोदवग्गणजीवे. हिंतो महामच्छदेहट्टिदजीवा असंखेज्जगणा होता वि विस्सासुवचएण अणंतगुणा । तिण्णं सचित्तवग्गणाणं मज्झे जहण्णबादरणिगोववग्गणादो उक्कस्ससुहमणिगोदवग्गणा असंखेज्जगणा त्ति जं मणिदं तेण सह एवं सुत्तं किण्ण विरुज्झदे ? " विरुज्झदे, जहण्णबादरणिगोदवग्गणादो उक्कस्ससुहमणिगोदवग्गणा अणंतगुणे ति एत्थ णिद्देसाभावावो । किंतु जहण्णबादरणिगोदवग्गणसामियस्स जहण्णविस्सासुवचयादो उक्कस्ससुहमणिगोदवग्गणाए आधारभूदमहामच्छट्टिदअणंतजीवाणं विस्सासवचयकलाओ अणंतगुणो त्ति भणिदं । ण च तत्थ द्वियसव्वे जीवा सहमणिगोदवग्गणा होंति, बावराणं अण्णोण्णण असंबद्धसुहमणिगोदवग्गणाणं च उक्कस्ससुहमणिगोदवग्गणत्तविरोहादो। एसि चेद परूवणट्ठदाए तत्थ इमाणि तिणि अणुयोगद्दाराणि जीवपमाणाणुगमो पदेसपमाणाणुगमो अप्पाबहुए त्ति । ५५५ ॥ एदेसि विस्सासुवचयाणं अणंतगणतसाहणठें इमाणि तिणि अणुयोगद्दाराणि एत्थ हवंति । ___ बहुत नोकर्म परमाणु पुद्गल उपलब्ध होते हैं। वह उत्कृष्ट विस्रसोपचय बादर निगोद जघन्य विस्रसोपचयसे अनन्तगुणा है। बादर निगोद वर्गणाकी आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियोंमें अनन्त जीव होते हैं तथा उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणामें भी अनन्त जीव होते हैं। किन्तु बादरनिगोदवर्गणाके जीवोंसे महामत्स्यके देहमें स्थित जीव असंख्यातगुणे होते हुए भी विस्रसोपचयकी अपेक्षा अनन्तगुण हैं। शंका- तीन सचित्त वर्गणाओंके मध्य में जघन्य बादरनिगोदवर्गणासे उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणा असंख्यातगुणी है यह जो कहा है उसके साथ यह सूत्र विरोधको क्यों नहीं प्राप्त होता ? समाधान- विरोधको नहीं प्राप्त होता, क्योंकि, जघन्य बादरनिगोदवर्गणासे उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणा अनन्तगुणी है इस प्रकारका यहां पर निर्देश नहीं पाया जाता। किन्तु जघन्य बादरनिगोदवर्गणाके स्वामीके जघन्य विस्रसोपचयसे उत्कृष्ट सक्ष्मनिगोदवर्गणाके आधारभूत महामत्स्यमें अनन्त जीवोंका विस्रसोपचयकलाप अनन्तगुणा है ऐसा कहा है। परन्तु वहां पर स्थित सब जीव सूक्ष्मनिगोदवर्गणा नहीं हैं, क्योंकि, बादरोंके और परस्परमें सम्बन्धको नहीं प्राप्त हुए सूक्ष्मनिगोदवर्गणाओंके उत्कृष्ट सूक्ष्म निगोदवर्गणा होने में विरोध आता है । इनकी ही प्ररूपणा करनेपर वहां ये तीन अनुयोगद्वार होते हैं - जीवप्रमाणानुगम, प्रदेशप्रमाणानुगम और अल्पबहुत्व ।। ५५५ ।। इन विस्रसोपचयोंके अनन्तगुणत्वकी सिद्धि करनेके लिए यहाँ ये तीन अनुयोगद्वार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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