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________________ ५, ६, ५५२ ) बंधणाणुयोगद्दारे विस्सासुवचयपरूवणा ( ४५९ अणंतगणो सिद्धाणमणंतभागो । तस्सेव उक्कस्सओ विस्सासुवचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो। तस्सेव उक्कस्सयस्स जहण्णओx विस्सासुवचओ असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। तस्सेव उक्कस्सओ विस्तासुवचओ असंखेज्जगणो। को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो ति। जीवसहियाणं पंचण्णं सरीराणं विस्सासुवचयस्स एदेण अप्पाबहुएण होदवं, अण्णहा सचित्त-अचित्तवग्गणाणं गणगारेण सह विरोहादो। जीवसहियाणं विस्सासुवचयस्स जहा अप्पाबहुअं परविदं तहा जीवादो पुधभूदाणं विस्सासुवचयस्स किण्ण वुच्चदे ? ग, जीवादो पुधभावेण गढ़पुग्विल्लबंधणगुणाणं जहण्णस्स उक्कस्ससामित्तेण सरीरोगाहणमावण्णाणं समयपबद्धप्पाबहुअं मोत्तण अण्णस्स अप्पाबहुअस्स असंभवादो। ण च जुत्तीए सुत्तं बाहिज्जदि, सयलबाहादीवस्स वयणस्स सुत्तववएसादो। संपहि विस्सासुवचयस्स जीवपडिबद्धस्त जहण्णस्स उक्कस्ससामित्तपरूवणढें तेति थोवबहुत्तपरूवणठं च उत्तरसुत्तं भगदि-- बादरणिगोदवग्गणाए जहणियाए चरिमसमयछदुमत्थस्स सवजहणियाए सरीरोगाहणाए वट्टमाणस्स जहण्णओ विस्सासुव - अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । उसीका उत्कृष्ट विस्रसोपचय असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। उसीके उत्कृष्टका जघन्य विनसोपचय असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। उसीका उत्कृष्ट विनसोपचय असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। जीवसहित पाँच शरीरोंके विस्रसोपचयका यह अल्पबहुत्व होना चाहिए, अन्यथा सचित्त अचित्त वर्गणाओंके गुणकारके साथ विरोध आता है। शंका-- जीवसहित शरीरोंके विस्रसोपचयका जिस प्रकार अल्पबहुत्व कहा है उस प्रकार जीवसे पृथग्भूत शरीरोंके विस्रसोपचयका अल्पबहुत्व क्यों नहीं कहते ? समाधान-- नहीं, क्योंकि, जीवसे पृथक् होनेके कारण जिनका पहलेका बन्धन गुण नष्ट हो गया है और जो जघन्य तथा उत्कृष्ट स्वामित्वकी अपेक्षा शरीरोंकी अवगाहनाको प्राप्त हैं उनके समय प्रबद्ध सम्बन्धी अल्पबहुत्वको छोड़कर अन्य अल्पबहुत्व सम्भव नहीं है। और युक्तिके द्वारा सूत्र बाधित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि, समस्त बाधाओंसे रहित वचन की सूत्र संज्ञा है। अब जीव प्रतिबद्ध जघन्य विस्रसोपचयके उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करनेके लिए और उनके अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते है-- शरीरको सबसे जघन्य अवगाहनामें विद्यमान अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थ जीवके ४ अ. का. प्रत्यो: ' सरीरगाहणागमावण्णाणं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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