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________________ ४३० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड आहारसरीरस्स पदेसग्गमसंखेज्जगुणं ॥ ४९९ ॥ को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो । तेयासरीरस्स पदेसग्गमणंतगुणं ॥ ५०० ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिध्दाणमणं भागो । कम्मइयसरीरस्स पदेसग्गमणंतगुणं ।। ५०१ ।। को गुणगारो ? अभवसिध्दिएहि अनंतगुणो सिध्दाणमणत भागो । एवमप्पा बहुए समत्ते सरीरपरूवणा समत्ता होदि । (५,६, ४९९ सरीरविस्सा सुवचयपरूवणदाए तत्थ इमाणि छ अनुयोगद्दाराणि अविभागपडिच्छेदपरूवणा वग्गणपरूवणा फडुयपरूवणा अंतरपरूवणा सरीरपरूवणाए अप्पाबहुए त्ति ॥ ५०२ ॥ को विस्सासुवचओ णाम । पंचणं सरीराणं परमाणपोग्गलाणं जे निध्दादिगुणेहि तेसु पंचसरीरपोग्गलेसु लग्गा पोग्गला तेति विस्सासुवचओ त्ति सण्णा । तेि विस्सासुवचयाणं संबंधस्स जो कारणं पंचसरीरपरमाणुपोग्गलगओ निध्दादिगुणो तस्स वि विस्तासुवचओ त्ति सण्णा, कारणे कज्जुवयारादो । एदेहि छहि अणुयोग --- उससे आहारकशरीरका प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है ।। ४९९ ।। गुणकार क्या है ? जगश्रेणिके असंख्यातवे भागप्रमाण गुणकार है । उससे तैजसशरीरका प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है ।। ५०० । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । उससे कार्मणशरीरका प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है ।। ५०१ ।। Jain Education International गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धों के अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । इस प्रकार अल्पबहुत्व के समाप्त होने पर शरीरप्ररूपणा समाप्त होती है । शरीरविस्रसोपचयप्ररूपणाकी अपेक्षा वहां ये छह अनुयोगद्वोर होते हैं अविभागप्रतिच्छेदपरूवणा, वर्गणाप्ररूपणा, स्पर्धक प्ररूपणा, अन्तरप्ररूपणा, शरीरप्ररूपणा और अल्पबहुत्व ।। ५०२ ।। शंका- विस्रसोपचय किसकी संज्ञा है ? समाधान- पाँच शरीरोंके परमाणुपुद्गलों के मध्य जो पुद्गल स्निग्ध आदि गुणोंके कारण उन पांच शरीरोंके पुद्गलोंमें लगे हुए हैं उनकी वित्रसोपचय संज्ञा है । उन विस्रसोपचयों के सम्बन्धका पाँच शरीरोंके परमाणु पुद्गलगत स्निग्ध आदि गुणरून जो कारण है उसकी भी विसोपचय संज्ञा है, क्योंकि, यहां कारणमें कार्यका उपचार किया है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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