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________________ ५, ६, ४०६ ) को गुण ० ? पलिदो० असंखे ० भागो । तेयासरीरस्स गुणाणि ॥ ४०२ ॥ बंघणानुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए णिसेयअप्पा बहुअं को गुग० ? पलिदो० असंखे० भागो । तेयासरीरस्स एगपदेस गुणहाणिट्ठानंतर मसंखेज्जगुणं ॥ ४०३ | को गुण० ? असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । कम्मइयसरीरस्स एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणं ॥ ४०४ । को गुण ० ? पलिदो० असंखे ० भागो । ओरालियसरीरस्स हैं ॥४०५॥ ( ३९१ णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि असंखेज्ज गुणाणि ॥४०५॥ को गुण० असंखेज्जाणि पलिदोवमच्छेदणय पढ मवग्गमूलाणि । वेडव्वियसरीरस्स णाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि संखेज्ज गुणाणि ॥ ४०६ || णाणागुणहाणिट्ठाणंतराणि असंखेज्ज गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । उनसे तैजसशरीर के नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं ॥ ४०२ ॥ गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । उनसे तैजसशरीरका एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ ४०३ ॥ गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण गुणकार है ! उससे कार्मणशरीरका एकप्रदेश गुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ ॥ ४०४ | गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । औदारिकशरीर के नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे उससे Jain Education International गुणकार क्या हैं ? असंख्यात पल्योंके जितने अर्धच्छेद हो उतने प्रथम वर्गमूलप्रमाण गुणकार है । उनसे वैक्रियिकशरीर के नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर संख्यातगुणे हैं ॥ ४०६ ॥ ता० प्रती ' तेयासरीरस्स णाणा (एय) पदेस- ' अ० का० प्रत्यो' 'तेणासरीरस्स णाणापदेस - इति पाठ: । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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