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________________ ३६६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं ( ५, ६, ३१६ जीवणियट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥३१६॥ के० मेत्तेण? आवलि. असंखे०भागेण सम्वजहणणिवत्तीए संखेज्जेहि भागेहि वा । १३ ।। उक्कस्सिया णिवत्ती विसेसाहिया ॥३१७।। के. मेत्तेण ? सगजहण्णजीविएण समऊणेण । १४ ॥ उववादिमस्स णिवत्तिट्ठाणाणि जीवणीयट्ठाणाणि च दो वि तुल्लाणि संखेज्जगुणाणि ।।३१८॥ को० गुण ? संखेज्जा समया । कुदो ? तीहि पलिदोवमेहि समऊणवसवस्ससहस्सेहि परिहोणतेत्तीससागरोवमेसु ओवट्टिदेसु संखेज्जरूवोवलंभावो । १५ ॥ उक्कस्सिया णिवत्ती विरोसाहिया ॥३१९।। के० मेत्तेण ? समऊणदसवस्ससहस्समेत्तेण । १६॥ ___ एवं परत्थाणेण सोलसदियदंडओ समत्तो । तस्सेव पदेसविरइयस्स इमाणि छअणुयोगद्दाराणि-जहणिया अग्गट्ठिदी अग्गठिविविसेसो अग्गठिविट्ठाणाणि उक्कस्सिया अग्गद्विदी उनसे जीवनीय स्थान विशेष अधिक हैं ॥३१६।। कितने अधिक हैं ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण या सबसे जघन्य निर्वृत्तिके संख्यात बहुमागप्रमाण अधिक है। उनसे उत्कृष्ट निर्वृत्ति विशेष अधिक हैं ॥३१७।। कितनी अधिक है ? एक समय कम सबसे जघन्य जीवितका जितना प्रमाण है तत्प्रमाण अधिक है। उससे औपपादिक जीवके निर्वत्तिस्थान और जीवनीययस्थान दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगणे हैं ।३१८॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है, क्योंकि, तीन पल्यका एक समय कम दस हजार वर्षसे हीन तेतीस सागरमें भाग देने पर संख्यात अंक उपलब्ध होते हैं । उनसे उत्कृष्ट निर्वृत्ति विशेष अधिक है ॥३१९।। कितनी अधिक है ? एक समय कम दस हजार वर्षप्रमाण अधिक है। इस प्रकार परस्थानकी अपेक्षा सोलह पदवाला दण्डक समाप्त हुआ। उसी प्रदेशविरचके ये छह अनुयोगद्वार हैं-जघन्य अग्रस्थिति, अग्रस्थितिविशेष For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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